पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मिन्नन्धुवाद। [* १५।। हगभग पड़ता है। भूपा का कयिताकाल संपत् १७०५ से समः झना चाहिए । परन्तु इनहे. काल नायक होने से यह धन पहा हुआ है इनकी अवस्था १०२ घर्ष के लगभग आती है। इन्होंने शिवराज्ञम्पय, भूपडल्लास, दूर्पणवास, और भुपादा। नामशः घार प्रन्य बनाये, परन्तु इनके अन्तिम तीन अर्थी का का पता ना लगतीं । उनके स्थान पर दिघावायनी छत्रसालदरफ र स्फुट छंद मिलते हैं । ब्र जभूप मार उपयुक्त तीन ग्रन्धों को मिला पर भूपयत्रंथायी के नाम से इन कविता व ग्रंथ हुमने नाग-प्रचरिण मंधमाला में प्रका- दित कराया है । शिवराभूप में अलंका का घत अच्छा सन हैं, और प्रत्येक अलकार के उदाइरस द्वार शिवराज का यश कथन किया गया है । जान पड़ता हैं कि भूपयानों ने इसे ७ घर्ष में बनाया और रवत् १७३० में यह समाप्त हुा । इस ग्रंय में पर्ध मूपण जी की कविता में हर जगद् धीर, भयानक, और द्र रस का प्रधान्य ६ । विशचायाघनी दायरासम्पन्धी ५२ छ। का एक बड़ाही जोरदार सुन्न ६ । प्रसारक में इनके दर्श घड़े ही उत्तम छन्द लिने गये हैं। स्फुट फाय में शुमने इनके छन्द रचे हैं। मूरण नै नायक चुनने में पो पटुता से काम लिया है। इन नायक शिवाजी और छत्रसाल हैं, जो समस्त भारत के श्रद्धा भागन ४ । फिर भी प्रकट में हैं। इनके ये महाराज नायक है, पर पास्तव में इन्होंने हिन्दू जाति का अपना नापक माना है । जानी' पता का विचार इनकी फर्षिता में सय हिन्दी कविये से अधिक