पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ३.pdf/२१

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९५२ मिनबंधु-विनोद देखो पूर्वालंकृत प्रकरण (५३५ ) संवत् १७५६ इनकी कविता तोष की श्रेणी की है। उदाहरण- अंग अरसौहैं छवि अधरन सौहैं, चढ़ी आलस की भौं हैं धरे आमा रतिरोज की; सुकबि कलस तैसे लोचन पगे हैं नेह, जिनमें निकाई. अरुनोदय सरोज की। माछी छबि छाकि मंद-मंद मुसकान लागी, बिचल बिलोकि उन भूषन के फोज की; राजै रद मंडली कपोल मंडली मैं, मानो रूप के खजाने पर मोहर मनोज की। (१३२३) खगनिया उन्नाव जिले में रणजीतपुरवा नामक एक कस्बा है। इसी में वास्- नामक एक तेली रहता था, जिसकी पुत्री खगनिया ने ग्रामीण भाषा में बहुत-सी अच्छी पहेलियाँ बनाई हैं । हैं तो ये बहुव ही साधा- रण भाषा में, परंतु इनमें कुछ ऐसा स्वाद है कि ये कविगण को भी पसंद आती हैं । इसके समय का निरूपण. हम नहीं कर सके हैं, उदाहरणार्थ इस स्त्री-कवि की तीन कहानियाँ हम नीचे लिखते हैं- प्राधा नर आधा मृगराज ; जुद्ध विनाहे प्राचै काज ! ... भाषा टूटि पेट भाँ रहै ; बासू केरिखगनिया कहै। (नरसिंहा) लंबी-चौड़ी आँगुर चारि दुहू पोर ते डारिनि फारि। जीव न होय जीव का गहै ; बासू केरि खगनिया कहै । (कंधी) भीतर गूदर ऊपर नॉगि ; पानी पियै परारा माँगि । विहि की लिखी करारी रहै ;बासू फेरि खगनिया कहै । (दावात) नाम-(३२) ख्यालीलाल । इनके छंद गोविंदगिल्ला- भाई के पुस्तकालय में हैं।