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मिश्रबंधु
          अज्ञात काल            १३५ 
 सिर फोड़ जलाली करते मगन हार वो न्यारे;
 शिवदिन के प्रभु केसरि साहेब चरनों के रहिवासी।

हजरत अल्ला सब दुनिया पालनवाला । जिसका आसमान है तंबू । धरती जाजम पबना खंबू । ऊपर गाड़ा है गा गंवू । हरदम अल्ला-अल्ला ॥ १ ॥ चंद्र-सूरज दोनो हैं चिरागी । नव दरवाजे दसवीं खिरकी । ऊपर रक्खी है एक फिरकी। सब घट अल्ला-अल्ला॥ २ ॥ सात समुंदर खंदक खोली । मोहबत का दरवाजा मोली। अबोल बोलत मीठी बोली। सब रस अल्ला-अल्ला॥ ३ ॥ साई केसरि गुरु पिरसारा । शिवदिन नाम मुरीद हिलारा । जगमग जागत ज्योत हिजारा । लाल हि लाला अल्ला-अल्ला ॥४॥

नाम--(३४५८) श्यामकरण ।
ग्रंथ--(१) अभयोदय भाषा, (२) अजितोदय भाषा।
नाम--(३४५६) श्रीमंजु केशानंद, स्वामी गुजरात-प्रांत। 
ग्रंथ--स्फुट रचनाएँ।
विवरण--यह काशी-निवासी सहजानंदजी के शिष्य थे।
नाम--(३४६०) सत्यराम ।
विवरण--श्रीयुत गोविंद रामचंद्र चांदे इन्हें बंगदेशीय 
 हिंदी-कवि बतलाते हैं।
नाम--(३४६१ ) स्वामी नित्यानंद ।
ग्रंथ--श्रीहरि-दिग्विजय ।
विवरण--आप उत्तर-भारत के निवासी तथा सहजानंदजी 
 के शिष्य थे। ग्रंथ में विशिष्टाहत-संप्रदाय तथा भक्ति- 
 मत का प्रतिपादन किया गया है।