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मिश्रबंधु
         पूर्व नूतन                १४७

(१९५०)प्रेमात्मक विषयों पर कविता रची। पहले ने प्रेम की व्याख्या की है और दूसरे ने नख-शिखि लिखा । श्यामसुंदर(१९५२) और रामसिंहजी ( १९५६) ने नायिका-भेद पर ग्रंथ रचे तथा अलंकारों पर भैरवदान (१९५९ ),जगन्नाथ चौबे (१९५०),और मुरारिदानजी (१९५०) ने इस काल परिश्रम किया। इनमें मुरारिदान का ग्रंथ बहुत प्रशंसनीय है। शास्त्रीय विषयों पर (एच्-एच् ) महाराजा विशवनाथ,रघुनंदन भट्टाचार्य,उदयचंद्र बोसवाल, बनादास, शिवजीलाल,गुमानसिंह, तुलसीराम शर्मा, लेखराम, कृपाराम शर्मा और स्वयं स्वामी दयानंद सरस्वती परिश्रम कर चुके थे। इनमें से बहुतों ने उपनिषदों श्रादि पर टीका-टिप्पणी करके आध्यात्मिक ज्ञान के लयों का निरूपण किया था । नूतन परिपाटी-काल में ऐसे विषयों पर बिहारीलाल जैन (१९४९), बाबू भगवानदास (१९५०),सुदर्शनाचार्य ( १९५०), राजाराम शास्त्री (१९५२), दर्शन दुबे (१९५२), महामहोपाध्याय डॉक्टर गगानाथ मा ( १९५६),लाला कन्नोमल (१९५७), रामावतार पांडेय (१९५६) तथा लाला रामजी शास्त्री ( १९६०)ने विशेष श्रम किया । इन सबों के ग्रंथ महत्ता युक्त हैं। हम (श्यासविहारी मिश्र तथा शुकदेव-विहारी मिश्र) ने भी भारतवर्ष के इतिहास तथा सुमनों-जलि में प्रायः ४०० पृष्ठों में हिंदू-धर्म-निरूपण पर अपने विचार लिखे हैं। बाबू भगवानदास ने अँगरेजी भाषा में इस विषय पर कई उत्कृष्ट ग्रंथ रचे, जिनमें प्राचीन दार्शनिक प्रश्नों पर नवीन विचार अच्छे हैं, विशेषतया Sceince of peace and sceince of enotions में । झा महाशय ने प्राचीन दार्शनिक शास्त्र का अच्छा मनन करके उन पर उपयोगी ग्रंथ लिखे हैं। लाला कओमल ने हिंदी में दार्शनिक विषयों पर श्रम करके अनेक सुपाध्य ग्रंथ