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मिश्रबंधु
            मिश्रबंधु-विनोद             १४६

करते हुए भी इनके व्यक्तित्व के कारण हमें भारतमित्र में भी समय-समय पर अपने लेख निकालना अच्छा लगता था। इनके लेखों में सजीवता तथा चरित्र में सौहाई था। शिव शंभु का चिट्टा मज़ाक और नुकीली बातों से लबालब भरा था | समाचारों की वृद्धि तथा सामाजिक विचारों के सम्यक् विस्तार से विविध विषयों पर ग्रंथ-रचना की प्रणाली इसी काल से जोर पकड़ने लगी है। बाबू राधाकृष्णदास (१९४७) ने अनेकानेक विषयों पर स्तुत्य ग्रंथ-रचना की, तथा कार्य-क्षेत्र में भी ऐसा ही औदार्य दिखलाया । बदरीदत्त शर्मा (१९४६) तथा अमीरअली (१९५०) ने नीति का कथन किया। सुंदरलाल (१९५९) ने बालोपयोगी पुस्तकों की रचना की गंगाशंकरजी पंचौली (१९५१), जगन्मोहन वर्मा(१९५२) और महेंदुलाल गर्ग ( १९५३ ) ने उपयोगी विषयों पर अच्छे ग्रंथ रचे ।

इन विषयों पर कथन यहाँ सूचमता-पूर्वक किए जा रहे हैं, क्योंकि ग्रंथ में प्रत्येक रचयिता का वर्णन दिया ही गया है, जहाँ वह देखा जा सकता।है। ठाकुरप्रसाद खत्री (१९४७) ने व्यापारी और कारबारी-नामक पन्न निकाला तथा ऐसे ही विषयों पर ग्रंथ-रचना भी की। रामनारायण मिश्र (१९४९) तथा साधुशरणप्रसाद(१९५०) ने इस काल यात्रा पर ग्रंथ लिखे । साधुशरणजी का भारत-भ्रमण कई भागों में एक बड़ा ही उपयोगी ग्रंथ है । रामनारायण मिश्र ने दो अन्य महाशयों के साथ योरप-यात्रा लिखी है। हम (शुकदेवविहारी मिश्र ) ने भी प्रायः सवा सौ पृष्ठों की योरप-नीरोग-यात्रा प्रकाशित की है। वाचस्पति तेवारी(१९४६) ने ज्योतिष पर कई ग्रंथ बनाए हैं । हरिनाथ (१९५३)और जगन्नाथप्रसाद चतुर्वेदी (१९५७) ने हास्य-रस का मज़ा दिखलाया है । रंगनारायणपाल (१९४६) तथा जवानसिंहजी