सं० १९४७ पूर्व नूतन सव । उदाहरण- हे-हे वीर-सिरोमनि सरदार हमारे, हे विपत्ति-सहचर प्रताप के प्रान-पियारे; तव भुज-बल सों मैं भयो रक्षा करन समर्थ, मातृ-भूमि स्वाधीनता प्रबल शत्रु करि व्यर्थ । अनेकन कष्ट सहि । या प्रताप ने उचित कहो के अनुचित भाखो, पर स्वतंन्नता-हेत जगत-सुख तृन सम नाखो। ढाय महल खंडहल किए सुख सामान विहाय, छानि बनन की धूरि को गिरि-गिरि में टकराय । जनम-दुख मेलि के नाम-(३४७८) शरच्चंद्र सोम । इन्होंने बारह पंडितों द्वारा समस्त १८ पर्व महाभारत को, प्रति श्लोक अनुवाद कराके सं० १६४७ में प्रकाशित किया। यह ग्रंथ बड़े ही महत्व का है। इसकी भाषा भी सरल और सुहावनी है। काशी नरेश का महाभारत छंदोबद्ध है, और कुछ संक्षेप से लिखा गया है, परंतु इसमें महाभारत के संपूर्ण श्लोकों का अनुवाद साधु भाषा में किया गया है। यदि इसमें अनुवादका पंडितों के नाम भी दे दिए जाते, तो कोई हर्ज न होता। इस तरह जान नहीं पड़ता कि कौन किसकी रचना है ? सोम महाशय ने यह काम बड़ा ही उत्तम किया कि भिन्न भाषा-भाषी होकर भी उन्होंने महाभारत- सरीखे भारी तथा लाभकारी ग्रंथ को हिंदी में लिखवाकर प्रकाशित किया। इसके लिये वह समस्त हिंदी जाननेवालों के धन्यवाद के पात्र हैं। उदाहरणार्थ हम थोड़ा-सा अनुवाद यहाँ पर देते हैं- श्रीवैशंपायन सुनि बोले, हे राजा जनमेजय ! इस प्रकार कुरु-कुल- श्रेष्ठ पांडवों ने अपने संगियों के सहित प्रसन्न होकर अभिमन्यु का