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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९१७ २४४ किया जाता है । अकवरी फौज़ की आमद सुनकर राणा प्रतापसिंह अपने शूर-वीरों से कहते हैं- सब बीरों से ललकार के यक वात. सुनाई; यह आखिरी बिनती मेरी सुन लो मेरे भाई । पैदा हुआ संसार में यक रोज़ मरैगा; मरना तो मुकद्दम है न टारे से टरैगा। फिर इससे भला मौका कहो कौन पढ़ेगा; रजपूती की क्या गोट का पौ रोज़ अड़ेगा। पाँसे करो तलवार तबर तीर की यारो; रन खेल मरद का है नरद शत्रु की मारो। पुरपों के बड़े बोल की इज्जत को बचाना; माता व बहन बेटी का सत-धर्म रखाना। निज धर्म च सुर-धामों का सम्मान बढ़ाना; तीरथ व महाधामों का सत्कार कराना। इन कामों में गर जान का डर होतो नडरिए; क्षत्री का परम धर्म है यह ध्यान में धरिए। दिल में जो हो यकलिंगजीभगवान् का आदर; बापा के व सांगा के हों उपकार सरों पर । बहनों किव कन्याओं की इज्जत की हो कुछ दर; यश लेने का कुछ ध्यान होनिंदा का हो कुछ डर। श्रीराम की औलाद की इज्जत प नज़र हो , तो भाइयों यह वह है बस बाँधो कमर को । काव्योत्कप की परख पर हमारा इनका मतभेद था । आप बिहारी और केशवदास को देव कवि से श्रेष्ठतर समझते थे। नास-( ३५५२) श्यामसुंदरदास खत्री (रायबहादुर)। इनका जन्म आषाढ़ सं० १९३२ में, बनारस में, लाला देवीदास '.