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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १६५६ जन्म-संवत् १९३४ वि० । यह महाशय कान्यकुब्ज ब्राह्मण शिवराजपुर के तिवारी हैं। आप रियासत नवीनगर कटेसर से पेंशन पाते हैं। समय-समय पर आपने बहुत-सी प्रासंगिक कविताएँ की । इसके अतिरिक्त आपने दो स्वतंत्र ग्रंथ भी लिखे- अर्थात् (१) बदरी-संहिता और (२) श्रात्मरामायण । इनका कान्य ऐतिहासिक होने के कारण रोला छंद प्रधान है, जिसका उदाहरण निम्नलिखित है । अापके पुत्र अनूपजी भी सत्कवि हैं। बदरी-संहिता जरी ना वा घरी जा छन लिख्यो पत्र दिवान 3; जैचंद कनउजराय जाच्यो गोर देश कृशान । हेतु फूकन गेह पृथ्वीराज चश संयोग; बरी संयोगिन स्वयं भय प्राप्त मन संभोग । पाय ऐसी आणि जागी जोगिनी परचंड ; लाँघि खैबर चली सारतखंड जारन चंड । नाम-(३५६२) रघुनाथसिंह बी० ए० ठाकुर । यह बाराबंकी में वकालत करते थे। आपका जन्म सं० १९३४ में शाहपुर में हुआ । आपके पिता ठाकुर पिरथासिंह एक प्रतिष्ठित जमींदार थे । आपने गद्य और पद्य दोनो में रचना करने का अभ्यास बालकपन से ही रक्खा । स्फुट छंदों के अतिरिक्त आपने लखनऊ-वर्णन छंदों में लिखा था, जो सरवस्वती पत्रिका में निकला । आपको कविता मनोहर होती थी। आपका शरीरांत सं० १९८६ में हुआ। उदाहरण- फैशन नूतन और पुरानो इन सबमें लखि लीजै चौक जाय शाही को अनुभव पूरन मन सों कीजै नवाबी लंबे पट्टे चूड़ीदार दुटंगा, 3 1 उकस