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मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण २३ खर रवि किरण संतापे रे गणांगण गइ पइठा, भणंति सहिता महिप्पा सइ एथु बुड़ते किंपि न दिठा । ध्रु. नाम-(३) कंबलपाद (सिद्ध ३०)। समय-सं० ११५ के लगभग । ग्रंथ-(१) असंबंध-दृष्टि, (२) असंबंध-सर्ग-दृष्टि, (३) कंबलगीतिका। विवरण-उड़ीसा के राजवंश में इनका जन्म हुआ था। भिक्षु होकर त्रिपिटक के पंडित हुए । इनके गुरु का नाम घंटापाद था। सिद्ध राजा इंद्रमूर्ति इनके शिष्य थे। उपर्युक्त ग्रंथ प्राचीन उड़िया या मगही में लिखे हुए हैं। उदाहरण- राग देवकी "सोने भरिती करुणा नाची, रूपा थोइ महिके ठावी । ६० वाहतु कामलि गश्रण उबेसें, गेली जाम बहु उइकाइसें । ध्रु. खंटि उपाड़ी सेलिलि काच्छि, वाहतु कामलि सद्गुरु पुच्छि । ध्रु. मांगह चंहिले चउदिल चाहन, केड आल नहि के कि बाहब के पारन । ध्रु. वाम-दाहिण चापा मिलि-सिलि मागा, वाटत मिलिलि महासुह संगा।" ध्रु० नाम-(३) जालंधरपाद अथवा आदिनाथ (सिद्ध ४६)। समय-सं० १२५ के लगभग । ग्रंथ---(१) विमुक्त-मंजरी गीत, (२) हूंकार-चित्त-विंदु- भावना-नाम।