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मिश्रबंधु

सं० १९६२ उत्तर नूतन w 4

उदाहरण- है उबारना तो वेग चलि अायो दीनानाथ, कालू कहै ऐसा फिर औसर न पायोगे मौका है इसी समय इवता है हिंदी धर्म, लेना अवतार वह लेकर दिखायोगे । नमो, गुडमारनिंग, बंदगी करूँ जो नाथ, पूर्व की-सी दया-दृष्टि ईश दरसाओगे; मरजाद मिटती है, देखत क्या कृपा-सिंधु, देरी यदि करोगे, तो पीछे पछताओगे । नाम--(३८८८) जेन वैद्य, जयपुर । रचनाकाल--१६६२ । विवरणमिस्टर जैन वैद्य का नाम जवाहरलाल था। आप जाति के जैन चैद्य प्राप्त के थे। इनके पिता महाराजा जयपुर के यहाँ अच्छे पद पर थे । इनका जन्म सं० १६३७ में हुआ । इन्होंने एस ही तक अँगरेज़ी पड़ी थी, परंतु विद्या-रसिक होने के कारण उसमें अच्छी उन्नति कर ली। आपने बँगला, उर्दू, मराठी, गुजराती और मागधी का भी अभ्यास किया। हिंदी के बड़े रसिक थे, और नागरी- प्रचार का सदैव अन्न करते रहते थे। इन्होंने जैन-मत-पोपक, उचित वक्ता और जैन गज़ट-पत्र निकाले थे, परंतु वे चल न सके । समालोचक पत्र भी इन्होंने चार साल तक बड़े परिश्रम तथा व्यय से चलाया, जिसके कारण हिंदी-संसार में इनकी बड़ी ख्याति हुई। छात्रावस्था में इन्होंने हिंदी के 'कमल-मोहिनी भंवरसिंह-नाटक', 'व्याख्यान-प्रबोधक' और 'ज्ञान-वर्णमाला' नाम्नी तीन पुस्तके लिखीं। नागरी प्रचारिणी सभा के उत्साही सहायक थे। सभाओं एवं समाजों में सदैव योग देते रहते थे। हमारे मित्र थे। इन्होंने जयपुर में एक नागरी-भवन खोला था, जो अब तक अच्छी