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मिश्रबंधु

३४४ मिश्रबंधु-विनोद सं० १९६२ दशा में है । आप बड़े ही उदार, विद्या प्रेमी तथा मित्र-वत्सल थे। थोड़ी अवस्था में मिों तथा कुटुंबियों को शोक-सागर में छोड़कर चैन्न संवत् १६६६ में चल बसे ! नाम- -( ३८८६) देवीप्रसाद चतुर्वेदी 'वचनेश' । जन्म-काल-सं० १९३७ । रचना-काल--सं० १९६२ । विवरण- श्राप फ़ीरोज़ाबाद के निवासी हैं । स्फुट छंद बहुधा कहा करते हैं, और सुकवि हैं। उदाहरण- जोग जग जाने जग त्यागिनो वियोग जाने, परम वियोगी योग साधन सुगम है जगत विचार जगदीश मन जोगै और, चिंताचल करन की भाखत निगस है। प्रेस पति पागो त्यो वियोग लवलीन सन, सकल विकार-हीन मारग अगम है योगी सब त्याग तिन्हैं त्यागत वियोगी कहौ, योगिन ते योग में वियोगी कौन कम है॥१॥ घुमड़ घमंड घन मंडल अखंड कैधौं, सबल सरोष बीर दलन उभायो है। गरज अकाश के तडाक तोप तुंगन की, झींगुर मॅडूक बीर बाजन बजायो है दामिनी प्रकाश कैधों खुले खड्ग बीरन के, धुरवा सुनादि धार धरन धसायो है; ग्रीषम महीप जार मान छाडिबे के हित पावस में इन्द्र बीर टोगो बनि प्रायो है ॥२॥ . । r