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मिश्रबंधु

सं०११६७ उत्तर नूतन ६ श्यामरंग बदरा निरखि गरज मधुर सुन कान ; छोड़ ध्यान मुनियान फिर मारत जटा पखान । कंज नखत संभ केहरी वापी सर्प कपाल मृग कपोत विव धनुप शुक श्याम सेत शशिबाल । नाम-(३६२३ ) छोटेराम शुक्ल महोपदेशक, साहित्यरत्न । जन्म-काल-सं० १६४२ (बुरहानपुर में)। रचनाकाल-सं० १९६७ । ग्रंथ-(१) हीरे की अंगूठी, (२) संसार-पाश, (३) सच्चे और झूठे मित्र, (४) विनोदी फळदराम, (५) सच्चा आत्म- समर्पण, (६) भक्ति-प्रदीप-भजनमाला, (७) बदी का बदला नेकी, (-) बाबू खटमलचंद, (६) चतुर चंपा, (१०) बढ़ई लोगों की अवस्था, (११) धर का फिजूलखर्च, (१२) मारवाड़ी- व्याकरण, (१३) प्रण-पालन, (१४) बालकों का सुधार, (११) चरखा, (१६) ज्योतिप-प्रवेश । विवरण--थाप वाला के शुक्ल कान्यकुब्ज ब्राह्मण गुजराती, मराठी, हिंदी तथा अँगरेज़ी जानते हैं। श्रापने पंचराज मासिक पत्र का कई वर्षों तक संपादन किया। श्राजकल मारवाड़ी-हितकारक के संपादक हैं । श्राप हिंदी के सुकवि एवं अच्छे गद्य-लेखक हैं। उदाहरण- हे ईश, हे दयामय, इस जाति को सुधारो; कुत्सित कुरीतियों से अव शीघ्र ही उचारो । हम भूलकर भले ही तुमको अचेत सोवें; पर तुम हमें कभी भी जगदीश, मत विसारो। है प्रार्थना यही अव, सुख शांति से रहें सब कट जायँ दुःख सारे, शरणागतों को तारों। .