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मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण 5 कंप कर 3 . आतंक्यो अलपत्त उठिव विरसिंघ सिंघ दिय दुवन देश दलमलन देश दक्षिन दिय कंपियः। फिर कंपिय गुजरात बहुर उत्तर सु काल पीठ देगयव देख अति ज्वाल विषम झर। अंगवय देव दानव न कोइ, 'चत्रभुज' जय जहँ जितियव अलि टेक अवनि एग टेककर, धरम टेक ठड्डिय भयव । नाम --(२५६ ) केशव सिश्र । रचना-काल-सं० १६७५ । ग्रंथ--जहाँगीरजसचंद्रिका । नाम---( २५२ ) महाराजा विक्रमाजीतसिंह, ओरछा-नरेश, ओरछा। कविता-काल-सं० १६८० वि० । उपनाम 'लघु' ग्रंथ-(१) लघु सतसई, (२) माधव-लीला । उदाहरण तू मोहने उर बस रही, मोहन उर बस कीन; सब लीनें तो सें रहें, तू उन ही बिच लीन । है जमुना जम ना जहाँ, जमुना नाम-प्रकास ; बाहुल शुक्ला न्हाइ तह, मिटे जमपुरी बास । जाँ जमुना जसु ना जहाँ, ना जम उर तेहि ठाँइ ; विमल मना हरि रंग सना, हो जु अधन दुखदाइ । नाम --(२) शिवलाल मिश्र, ओरछा। कविता-काल-सं०.१६८० वि०, जन्म सं० अनुमानतः १६६०। महाकवि बलभद्रजी के पौत्र ।