पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/३९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३९२
३९२
मिश्रबंधु

सं० १९७० उत्तर नूतन ग्रंथ-(१) स्वराज्य का शंख (खंड काव्य), (२) कानुन-भंग (गद्य)। विवरण- [-आजकल आप माधुरी के संपादक हैं । समय-समय पर श्राप निम्नलिखित पत्र-पत्रिकाओं के संपादक अथवा उप-संपादक रहे । श्राप एक लब्ध-प्रतिष्ठ संपादक तथा सुकवि हैं । छात्रसहोदर (मासिक), कान्यकुब्जनायक (मासिक), हितकारिणी (मासिक), तिलक (अद्ध साप्ताहिक), कर्म-वीर ( साप्ताहिक), सुधा (मासिक), गंगा-पुस्तकमाला की प्रायः २० पुस्त। आप ब्रज-भापा तथा खड़ी बोली के कवि हैं, और विदग्ध नाम से भी रचना की है। उदाहरण- धन निधनी के निराधार के अधार होते, आशा-नभ होते अभिलाष के सदन के; बरसा विभावरी में होते कहीं स्वाँति-बुंद, होते सुधा-धार जो कहीं चकोर मन के। किंशुक की गध होते सद होते अंजरी के, शारदी प्रभात खंजरीटों के विजन के; मचल मचल रोते शिशु के सनेह होते, सूखे अधरों के रस अंचल रुदन के । छाँड़ि गए तो कहा बिगरो झगरोई मिटो कलपावति नाही; आँखि के फूटेई पीर गई जो भई सो भई तेहि गावति नाहीं। ऊधो सँदेसन खेती न होति सुनी का कबौ कहनावति नाही; औरन की कछू जानें नहीं सुधि स्याम की तौ हमें श्रावति नाहीं। नाम-( ३६५२ ) मैथिलीशरण गुप्त, चिरगाँव, झाँसी। जन्म-काल-लगभग सं० १९४२ । रचना-काल-सं. १६७० सें।