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मिश्रबंधु

१४ . मिश्रबंधु-विनोद सं.१९७५ देख रहे अनिमेख अनेक सुमाखन के परसिद्ध पुजारी ; भारत-भानु के भाल की भव्य है विदी प्रभामयी हिंदी हमारी। जो अन्यक्त सिंधु कल्लोलित है वसुधा में पाठो याम ; मैं हूँ वही भिन्न होने पर मेरा हुआ दूसरा नाम । है विभिन्नता नाम-मात्र की मुझमें उसमें भेद नहीं जल-भात रवि की छाया का क्या और नाम है सुना कहीं। नाम-(३६६३) मंगलदेव शास्त्री एम० ए०, डी फिल । रचना-काल-सं० १९७५ । रचना-हिंदी-शब्द-शास्त्र पर ग्रंथ । विवरण-श्राप एक उच्च कोटि के लेखक हैं। विषय भी बहुत गंभीर चुना है। नाम--- ( ३६९४) रामनारायण शर्मा, राज्य छतरपुर, बुंदेलखंड। जन्म-काल-सं० १९६३ । रचना-काल-सं० १९७५ । ग्रंथ-(१)व्यंग्य-बवंडर, (२) बुढ़िया-पुराण, (३) संगीत-सुधाकर, (४)गंगाधर-ग्रंथावली (अप्रकाशित), (५) स्फुट लेख तथा कविताएँ । विवरण-यह कान्यकुब्ज द्विवेदी-कुलोत्पन्न लेखक हैं। इनका निवास स्थान कानपुर प्रांतांतर्गत हथेरुवा ग्राम है। कुछ दिन आप श्रीमान महाराजा साहब छतरपुर के हिंदी पुस्तकालय में काम कर चुके हैं । इनकी कविता नूतनता से मंडित परम प्रोजस्विनी है। उदाहरण- प्रकृति ब्रह्म माया से हूँ मैं परे, प्रकृति, परमेश्वरि जगज्जननि ; नटी कहते हैं मुझको व्यर्थं, नचा सकती सुसृष्टि को स्वयं ॥१॥