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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १.१७१,

को तनु-धारी मरत नहि, जनमत या संसार 'प्राशुतोष' ते धन्य जो, करत जाति-उपकार । ( अप्रकाशित मुद्रिका-रहस्य से) थी चल रही शुचि वायु परिमल संद-मंद सुचाल-सी: अरु चंद्रिका प्रसरित जटित थी श्वेत सुभ्र मराल-सी। थी गुंज धुनि अलि पुंज की जब कुंज-कुंज गुंजा रही कुसुमित कदंबारूढ़ हो कादंबरी थी गा रही। . नाम-( ४००१) सियारामशरण गुप्त, चिरगाँव, झाँसी। जन्म-काल-सं. १९५२ । रचना-काल---सं० १९७२। ग्रंथ----कुछ बनाए हैं। कुछ अनुवाद भी हैं। आ-नामक ग्रंथ भी है। विवरण-प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त के आप कनिष्ठ भ्राता हैं । कविता आप भी अच्छी करते हैं । सामाजिक विषयों पर सुरुचि- पूर्ण कविताएँ लिखते हैं। नाम-(४००२ ) सुमित्रानंदन पंत । जन्स-काल लगभग सं० १६५५ । रचना-काल-सं० १९७५॥ ग्रंथ-(१) वीणा, (२) पल्लव, (३) गुंजन नामक एक नाटक- ग्रंथ भी लिख रहे हैं। विवरण ----श्राप खड़ी बोली में बहुत चमत्कार-पूर्ण रचना करते हैं। छायावादी भी हैं । इनके उपर्युक्त तीनो ग्रंथ हमारे देखे हुए हैं । पल्लव बहुत पसंद है । इनकी रचना हिंदी के प्रसिद्ध प्राचीन कवियों के भी साहित्य का सामना कर सकती है। भावों का अनूठापन तथा उनकी सबलता इनके मुख्य गुण हैं । हम पंतजी को वर्तमानः कवियों में बहुत ही आदरणीय दृष्टि से देखते हैं। प्रकृति का. सौंदर्य आपने अच्छा देखा है । कोमलता इनका श्लाघ्य गुण है।