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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९६५ - उदाहरण मोरे ग बस रहो बाली श्याम ! सजल-जलद दुति बदन मनोहर सब गुण उपमा-धाम ; अमित दिवाकर स-कर विविध प्रभु कीन मुकुट-विश्राम । पाप-क्रीट ध्रुति अलक-पलक भ्र. बसत दामिनी दाम . श्रुति-कुंडल नाना मनि शोभा राजत तिलक ललाम । श्वेत बिंदु-कण तारा गुन गण लसत अमित गुण यास ; मुक्ता-दशन अधर-विद्रुम-प्रभु निरख चकित सुर-बाम । कवि, विधु रविज भानु मणिमाला गल-राजत जप' नाम ; भुज केयूर बलय कर पहुंची कटि कांची अभिराम । अमित कोटि ब्रह्मांड कि शोभा संकोचित लख काम ; नूपुर चरन-कमल-ध्वनि में 'शिशु' कियो चेतन विश्राम । नाम-(४१०१) भगवानदास केला, वृंदावन-निवासी वैश्य । जन्म-काल-तगमग सं० १९४६ । रचना-काल-लगभग सं० १९६५। अथ-विश्व-वेदना और इतिहास तथा अर्थ-शास्त्र पर कई अच्छे ग्रंथ लिखे हैं। प्रेम-महाविद्यालय में कई साल अध्यापक तथा प्रेम-पत्र के संपादक रहे हैं। हिंदी के उत्साही लेखक तथा कवि हैं। नाम-(४१०२) भगवानदास हालना । विवरण-श्राप हिंदी के प्रसिद्ध लेखक हैं । -(४१०३) भगवानदीन मिश्र, शाहपुरा, जिला मंडला। जन्म-काल-सं० १९४० । प्रथ-(१) राजेंद्र-विलास, (२) श्रीरामरघुवंश-विनय, (३) श्रीराम-धनुष-यज्ञ, (४) शंभु विवाह, (१) राम-रंजनी, (६) फूल-वाटिका। -पम--(४१०४ ) भवानीचरण (लालन ), फतेहपुर |