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मिश्रबंधु

४६८ मिश्रर्बधु-विनोद सं० १९७२ विवरण- -यह कायस्थ-कुलोत्पम श्रीजगनाथजी के पुत्र हैं। हिंदी के अतिरिक्त इन्होंने गुजराती तथा बैंगला-भाषाओं का भी ज्ञान प्राप्त किया है। इन्होंने कलकत्ता के विद्वानों द्वारा स्थापित निखिल भारत- साहित्य-संघ की परीक्षा के उपलक्ष में २०० पृष्ट का एक गवेषणा-पूर्ण लेख लिखा था, जिस पर उक्त संघ से इन्हें साहित्यरत्न की उपाधि मिली । लव-कुश ग्रंथ इन्होंने छत्रपुराधीश एच्० एच० श्री महाराजा सर विश्वनाथसिंहजू के परामर्श से. लिखा । यह हिंदी-हितैषी लालचंदजी सेठी के श्राश्रित हैं। नाम ---( ४२१८) सदाशिव दीक्षित साहित्याचार्य, भगवंत- नगर (हरदोई)। जन्म-काल--सं० १९१६ । कविता-काल-सं० १९७२ । नंथ-~~(१) माधव-काव्य (खंड काव्य, ५ वर्ग ) अप्रकाशित, (२) राष्ट्र-भाषा का चुनाव, ( काव्य, ४० षट्पदी हैं ), (३) मोहन ( उपन्यास ) अप्रकाशित, (४) पांचाली-परिणय (खंड काव्य, ७ सर्ग), (५) बुद-सतसई की टीका, (६) दोष-दिग्दर्शन (अप्रकाशित)। विवरण-आप साहित्योपाध्याय पं. मथुराप्रसादजी के सुपुत्र हैं। आपके शिक्षा तथा कविता-गुरु काशीस्थ राजकीय संस्कृत पाठशाला के प्रधानाध्यापक महामहोपाध्याय पं० भवानीदत्त दीक्षित थे। उदाहरण- दानव दुर्जन दंडित होकर जो अति ही विलखाय रही है; होकर शत्रु अधीन अधीर भई अरु जो दुख पाय रही है। 'जागहु-जागहु यो कहिके अरु जो दुखड़ा निज गाय रही है। लाज लगे कहते हमको यह दुःखित भारत-भूमि वही है ।