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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं. १९७२ अतः सोच मत बन मतवाला मचा रंग-रण खूब, उसी शक्ति से, उसी तेज से कर अरियों पर वार । पुनः हो धन्वा की टंकार । नाम--(४२६१) प्रसादीलाल (शर्मा)। जन्म-काल-सं० १९५५ । रचना-काल-सं० १९७५ ग्रंथ-~-स्फुट छंद तथा लेख । विवरण-~-पं० कँदनीराम सारस्वत के पुत्र मनीगढ़, पोस्ट वेली, जिला अलीगढ़-निवासी अध्यापक हैं । उदाहरण- रे मन, प्रीतम तैं बिसरायो। पिय की सेवा करी न नेकहु, सिगरो जनम गंवायो, कबहूँ टुक इक ठाँव न बैठ्यो, इत-उत रह्यो श्रमायो । लिपट्यो रह्यो मोह-माया में, प्रीतम ढिग नहिं श्रायो, विषयासक्त कुचाल न कबहूँ विषयन ते थिनि आयो। ज्यों मल कीट सदैव प्रेम सों, मल ही मौहि समायो , उलटो चल्यो छाँड़ि मग सूधो, बहुतक मैं समुझायो। प्रिय प्रीतम की प्रेम-पुरी ते छिन-छिन दूर दुरायो , जिन सँग प्रेम कियो मन मूरख, तिन हुन संग दुरायो। पाप-पुंज दुख रूप जलधि मैं उलटो ठेलि गिरायो। नाम-~~( ४२६२ ) बालमुकुंद वाजपेयो, रानीकटरा, लखनऊ। जन्म-काल-लगभग सं० १९४० रचना-काल-सं. १९७५


अंय-बचमण साप्ताहिक के संपादक थे। विवरण-अाजकल जीवन बीमा का काम करते हैं ।