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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९७६ में ईश्वरीप्रसाद शर्मा ( १९७६ ), निरालाजी (१९७६), मधुवनी (१९७७), सूर्यानंद वर्मा (१९८१), लघमीनारायणसिंह सुधांशु (१९८९) के नाम हैं, तथा आख्यायिका में जनार्दन मा (१९८६) एवं धन्यकुमार ( १९८८) के । सत्कवियों में निरालाजी, रामलोचन शर्मा (१९७६), गयाप्रसाद श्रीहरि (१९७६), रामाज्ञा द्विवेदी (१९७६), पिंगलसिंह (१९७७) काशी- नाथ द्विवेदी ( १६७६), रामसहाय पांडेय ( १६७६ ), रामशंकर रसाल (१९८०), उदयशंकर (१९८०), प्रफुल्लचंद्र अोझा ( १९८०), उमाशंकर उमेश (१९८२), वैद्यनाथ मिश्र ( १९८२), जगन्नाथ मिश्र गौड़ ( १९८८), भुवनेश्वरसिंह (१९८२), रामचंद्र शर्मा (१९८३), रामचंद्र शुक्ल सरस (१९८५), अनूप (१९८२), रमाशंकर मिश्र ( १९८२), हृदयेश (१९८१), अवविहारी श्रीवास्तव (१९८७), नंदकिशोर झा (१९८८), भगवतीचरण वर्मा ( १९८६ ) तथा बालकृष्ण राव (१९८६) के नाम हैं। इनमें निरालाजी और हृदयेश विशेषतया श्लाध्य हैं। इनकी रचनाएँ उच्च कोटि की होती हैं । अनूप अच्छी वीर-काव्य बनाते हैं तथा रमाशंकर अच्छे पत्र-संपादक एवं सुकवि हैं । अनुवाद- कर्ताओं में एकबालबहादुर वर्मा (१९७६ ) तथा धन्यकुमार जैन (१९८८) कथनीय हैं। सूर्य वर्मा (१६८०) निबंधकार हैं। समालोचकों में कृष्णविहारी मिश्र तथा सरस कथनीय हैं । इतिहास- कारों में ईश्वरीप्रसाद (१९७६), सत्यकेतु विद्यालंकार (१९८०) जयचंद विद्यालंकार तथा गंगाप्रसाद मेहता ( १९८५) वर्ण्य हैं। मेहताजी ने चंद्रगुप्त विक्रमादित्य-नामक ग्रंथ में गुप्त साम्राज्य का बहुत ही सुपाख्य वर्णन अच्छी छान-बीन के साथ किया है तथा प्रमार विक्रमादित्य को भी एढ़ करनेवाले पुरातत्व लेखकों के प्रबल प्रमाण दिए हैं। जयचंद बहुत ही श्लावयं ऐतिहासिक लेखक हैं।