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मिश्रबंधु

. ५२० मिश्रबंधु-विनोद सं०१६ नाम-(४३०७ ) ज्योतिषचंद्र घोष बी० ए०, ग्राम रूपसा. जिला भागलपुर (बिहार-प्रांत)। जन्म-काल-सं० १९५४ । रचना-काल-सं १९७६ । मृत्यु-काल- -सं० ग्रंथ-सिकंदर और पुरु (अपूर्ण खंड काव्य)। विवरण --~-यह बाबू फेकूलाल घोष के पुत्र थे । सदा परीक्षानों में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए । सन् १९७७ में बी० ए० हुए। कुछ काल तक येह मारवाड़ी-पाठशाला ( हाईस्कूल), भागलपुर के प्रधानाध्यापक रहे । इनकी कविताएँ 'सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुआ करती थीं । आपने चंपानगर (भागलपुर ) से 'सुरभि' नामक साहित्यिक मासिक पत्रिका निकाली थी। उदाहरण- आकांक्षा मोहन ! पुनः श्रानंदमय श्रुति-मधुर मुरली-तान हो, जीवन-समर में शांतिमय फिर पुण्य-गीता-गान हो । नियमाण भारत को नवल स्वर्गीय जीवन दान हो करुणा-सुधा के पान से जन का परम कल्याण हो। दारिद्रय-दानव मनुज-शोणित से यहाँ है पल रहा, सबको कुचलता चक्र दुख-दुर्भाग्य का है चल रहा । घर-घर कलह के रूप में फल फूट का है फल रहा, श्री' द्वेष-दावानल मनोचन में भयंकर जल रहा। ये इनका प्रभो ! अब शीघ्र ही संहार हो, सद्भाव से सुरभित सुखद यह स्वर्ण का संसार हो। मानव-हृदय औदार्थ औं' उत्साह का श्रागार हो, 'निःस्वार्थ पावन प्रेम का सर्वत्र ही संचार हो । ....