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मिश्रबंधु

सं० १९७६ उत्तर नूतन - उदाहरणः चढ़ि चित्तवन-नैया भई लाज - पयोनिधि पार; एकै वहै विलोकिए नाविक नंदकुमार। अचल चपल चल अचल किय, काल लाल कुच नैन ; हेरा फेरी दुहुन मन लई दलाली मैन । अचल भए चख चित पथिक अँटके दुहुन अबूझ ; खर चितौनि काँटनि विधे, मारग परै न सूझ । मदन-ग्राह गहरे गह्यो, हेरत हरि तन भास; मानसगामी गति मही, बारन - तारन त्रास । औचक प्यो चूम्यौ वदन रह्यो मान मन माँहि दुरि उछंग कॅपि-कॅपि कहै नीद नवेली नाहि । भजै न राका ससि व है, जाकर परस सुभाय ; पग-सरोल सचुके, तऊ मुख - सरोज मुसकाय । नाम-(४३०६) घासीराम व्यास ( सनाढ्य ) मऊ (झाँसी)। जन्म-काल-सं० १९६०। कविता-काल-सं० १६७८ । उदाहरण- अक्षत विचार चारु चंदन चढ़ाय शुभ , सुमन सुहाती माल सुमन सुहाती की; 'व्यास' तर अतर सुगंधन लगाय धूप भारती उतारै करपूर पूर बाती की। सुजन सँघाती श्याम सुचि रुचि राती पूज , सुख सरसाती विधि सुख शरसाती की; मंजु मुद माती पाती त्रिपुरनिपाती महा- देव पै चढ़ावे वेल पाती पंचपाती की।