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मिश्रबंधु

सं. १९८० उत्तर नूतन । . . उदाहरण- एहो अलि, प्रायो अब श्रीसर अनूप ऐसो, शानद अपार अंग अंगन - श्रमावैगो जाके हेतु जाके बाग ताके तूल तान माह, ताके अब पाने दिन पाके हरखावैगो । प्रेम लज साज आम-मौर-मौर शीश , धार, सहित समाज -खों बसंतराज श्रावैगो, एही बन एही बाग सह अनुराग भाग कुंज-कुंज पुंज-पुंज गुंज रस पावैगो । औसर अनूप अखती को यह श्रायो पाली, छायो श्राज राज ब्रजराज गरबीले को खेलन सखीरी कहो कौन बिधि जाऊँ अब, गैल-गैल गोल छैल छलिया छवीले को। ऐसी परी वान मान कान की न कान देत कान देत नाही, कहो करों का हठीले को; लटका करूँगी, पनघट का न जैहों चीर, खटका बड़ो है मोहि सटका लचीले को। नाम-(४३२४) बिसमिलजी। जन्म-काल-सं० १९५५ । विवरण- इनका पूरा नाम सुखदेवप्रसादसिंह है, किंतु यह अपने उपनाम 'बिसमिल' से ही हिंदी-ससार में प्रख्यात हैं । यह मुंशी विश्वेश्वरदयाल के पुत्र हैं। श्राप उर्दू और हिंदी दोनो के कवि हैं। उदाहरण- कोई समझे या न समझे, मैं तो समझा लफ़्ज़-लफ़्ज़ ; चुपके चुपके कह दिया सब कुछ तेरी तसवीर ने }