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मिश्रबंधु

५२४ मिश्रबंधु-विनोद सं. १९८२ श्रापकी कविताएँ 'शिक्षा', 'साहित्य-पत्रिका' (श्रारा ), 'पाटलिपुत्र'- 'प्रताप', 'मर्यादा' आदि पत्र-पत्रिकाओं में निकल चुकी हैं। उदाहरण- इस सुभग उद्यान में किस शान से आज तू फूली हुई है मालती; चंचरीकों पर तथा नरबृद पर, माधुरी अपनी सभी पर डालती। मुग्ध भौंरा है तुझे अवलोक कर, पास तेरे भनभनाता बार-बार तेरे ही गहने पहनकर षोडशी कर रही हैं सोलहो अपना शृंगार । मालती यह मोहनी तव गंध है, रंग भी तेरा है चटकीला बड़ा; ज्ञात होता है मनो इस बाग में हो पड़ा यक शुभ मोती का घड़ा। याद रख पर मालती यह दिन सदा एक-सा रहता नहीं आज सुख का जिस जगह डेरा पड़ा, दुःख होगा कल उसी भागार में । प्राज तू फुली हुई है शान से, है सुरभि चारो तरक कल वही मैं देख लूँगा बाग में चूमती है तू पड़ी रहकर मही । जो भ्रमर था देख तुझको गूंजता, तुझको न पूछेगा वही, संसार में; फैला रही। भूल भी