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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद . रचना-काल-सं० १७५५ । साल के विषय में कवि ने इस प्रकार लिखा है- "संवत सत्रहले पंचावन, ऋतु वसंत वैसाख सुहावन, शुक्ल पक्ष तृतिया रविवार" विवरण-याप जैन-धर्म के अनुयायी थे। ग्रंथ में तत्त्व-ज्ञान का स्पष्टीकरण है। नाम-(६१० ) (महाराजा) राजसिंहजी, कृष्णगढ़ । जन्स-संवत् १७३ १, कार्तिक सुदी १२ । काव्य-काल--१७५६ । ग्रंथ-रुक्मिणी-हरण, जन्मोत्सवलीला, वाहुविलास, राज-प्रकाश, सुख समीप श्रादि । परिचय-सुकवि बृद से आपने कविता करनी सीखी थी । यह काल मुग़लों के पतन का था । दरबार में आपका विशेप मान था। सुअज्जम और आज़म के युद्ध में राजसिंह की वीरता का आपने बखान किया है। उदाहरण- चंद उतै इत गोकुलचंदहि प्रगटत होड़ परी; उतहिं चकोरी इत को गोरी तन-मन लखि बिसरी । उत्त को भोगी इत रिख जोगी महामोद मन माने

उत दै अमृस इत पंचामृत लखो प्रगट नहिं छाने । उत दुजराज इतै ब्रजराजा दोउ सुरराज सुहाई ; पाप कर्म वे धर्म-कर्म ये निगम पुरानन गाई । गोपी ग्वाल तहाँ सब बालक दूध-दही बिस्तारे; राजसिंह प्रभु ब्रज के जीवन भक्ति जगत निस्तारे । नाम-(६१५) दरिया साहब, जैतरान ग्राम (मारवाड़)।