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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद सं० १९८८ अंथ-(१) स्वदेश-गीत, (२) कलाधर-काव्य-संग्रह, (३) बाल-विवाह नाटक, (४) शिवरत्न-शतक (१) कर्ण-शतक । उदाहरण मानी गई सर्वश्रेष्ठ जाति जगती में जौन, जाके तप-बलते त्रसित सोई विप्र-वंश माहि जायो श्रीकुमार, जाको सुवन अकेलो, किंतु काहू सों न डर है। जौनपूर-प्रांत माहिं ग्राम है पेसारा बसो, जहाँ जन्मभूमि और छोटो एक घर है। काशी जाय भयों शिष्य शुक्ल शिवरतजी को, नाम जगदंबा, उपनाम कलादर' है। नाम-( ४३६१ ) नृसिंह पाठक 'असर', रतैठा, हवेली (मुंगेर)। जन्स-काल-सं० १९६३ । रचना-काल-सं० १९८ET विवरण-आप सुझदि हैं। उदाहरण- मुरलिके! मेरे सुख में कंटक बनकार भरी मुरलिके! तू आई। मेरे संजु विलास हाल में तूने बाधा पहुंचाई। तेरे साथ नाथजू मेरे मत्त बने रहते सब काल ; कभी न सुधि लेते हैं मेरी, यद्यपि रहती परम बिहाल । पा बसंत अनुभूल समय लगने को थे जब सुंदर फूल ; उसी ससय तूने आ सौतिन, उत्पाटा सहसा सुख-मूल । शरत् चंद्र की निन्ध चंद्रिका में जब थी कर रही बिहार बादल बनकर उसे छिपाया, अंधकार का किया प्रसार ।