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मिश्रबंधु

और करुणा-रस के कोमलतम मनोभावों की मंजुल, सनीच कल्पना- मूर्तियाँ, पीर-रस की प्रोजस्विनी सूक्तियाँ, देश-प्रेम फा छलकता हुआ प्याला, शांत-रस की सुधा-धारा, रसानुकूल अलंकृत भाषा फा मुहावरेदार प्रयोग पौर संक्षेप में कहने का अद्भुत कौशल आदि एक ही जगह देखना हो, तो इस दुलारे-दोहावली को अभी मंगा लीजिए । सादी प्रति स्टिम प्रति जिल्ददार प्रति ॥ बिहारी-रत्नाकर महाकवि बिहारी की जगप्रसिद्ध सतसई पर अद्वितीय हिंदी-भाष्य । भाष्यकार, व्रजभाषा-साहित्य के पारदर्शी सर्मज्ञ विद्वान् स्वर्गीय बाबू भगनाथदास रत्नाकर' बी० ए० । संपादक, श्रीदुलारेलाल भार्गव । सुधा-श्राकार । छपाई-सकाई आदर्श । जिल्द और सजावट भी अपूर्व । हिंदी में इसके जोड़ का कोई सटीक महाकाव्य नहीं । इस वृहद् ग्रंथ ने हिंदी-संसार के प्रजभाषा-साहित्य में युगांतर उपस्थित कर दिया। यू०पी० की विशेष योग्यता और प्रागरे, बनारस आदि विश्वविद्यालय में कोर्स है। बिहारी, नयशाह यादि के असली चित्र । मूल्य ) मतिराम-थावली (द्वितीयावृत्ति) महाकवि मतिराम हिंदी के नवरत्नों में से हैं। उनके ग्रंथों का अच्छा संस्करण कहीं नहीं मिलता। हमने पं० कृष्णविहारीजी मिश्र से संपादन कहाफर यह ग्रंथावली निकाली है। हिंदी-संसार में यह अद्वितीय चीज़ है । मतिराम-सतसई भी, जो बहुत धन व्यय करने पर हमें मिली है, इसमें सम्मिलित कर दी गई है। टिप्पणियाँ, शब्दार्थ, नोट, आलोचनात्मक विस्तृत भूमिका भी है, और बी० ए०, एम० ए० और साहित्य सम्मेलन की परीक्षा में पाठ्य पुस्तक । मूल्य २॥, सगिल्ब ३)