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मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण 3. 3 . चाही के निमित तन बाही के निमित मन, वाही के निमित जन रीति नितप्रति की वेद-विधि धारन को व्रज के बिहारिन को, धर्म अनुसारिन को संपति सुमति की। सब धन-धाम काम कामना समरपत, हरि ही के नाम थिति निति-क्षिति पति की बलि जैसे नाथ जू के रूप बलिहार रूप, सरवल आतंम निवेदन भगति की। नाम-(१५१ ) दामोदर (जी), कृष्णगढ़ । रचना-काल-सं. १८४० के लगभग। परिचय-कवि वृद के वंशजों में तथा रघुनाथसिंहजी के कृपा- पात्र थे। गंगावाक्यविनोद में विशेषकर आपका ही हाथ था। उसके मंगलाचरण का एक छंद-इस प्रकार है- श्रीकलियान कृपा के निधान विशुद्ध विज्ञान बदावन हारे; भक्त सहाय करें प्रभु धाय यह श्रु त गाय पुराण अठारे । आनंददायक लाभ बढ़ायक दुःख दरिद्र नशायक सारे । दाम के स्वामि सु श्रीधनश्याम करौ सिधि काम सुवेग हमारे । नाम~(१२) मुनिराज। ग्रंथ-(१) पासा केवली, (२) चालीसी, (३) पंचशब्दी, (४) पंछी-परीक्षा, (५) स्वमाध्याय, (६) चौबीस एकादशियों का माहात्ल्या रचना-काल--१६वीं शताब्दी का मध्य काल । विवरण-कवि ज्योतिष शास्त्रज्ञ था । नाम--(२) वसंतराज। अंथ-शकुनावली।