सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मुण्डकोपनिषद्.djvu/१२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२० मुण्डकोपनिषद् [मुण्डक ३ समाप्ता ब्रह्मविद्या, सा येभ्यो यहाँ ब्रह्मविद्या समाप्त हुई । जिन ब्रह्मा आदिसे परम्परा- वह ब्रह्मादिभ्यः पारम्पयंक्रमण कमसे प्राप्त हुई है उन परमर्पियोंको संप्राप्ता तेभ्यो नमः परमऋषिभ्यः नमस्कार है । जिन्होंने परब्रह्मका परमं ब्रह्म साक्षादृष्टवन्तो ये साक्षात् दर्शन किया है और उसका बोध प्राप्त किया है वे ब्रह्मा आदि परम ब्रह्मादयोऽवगतवन्तश्च ते पर- ऋषि हैं; उन्हें फिर भी नमस्कार मर्षयस्तेभ्यो भूयोऽपि नमः । है । यहाँ 'नमः परमऋषिभ्यो नमः परमऋषिभ्यः' यह द्विरुक्ति द्विवचनमत्यादरार्थं मुण्डकसमा- ऋषियोंके अधिक आदर और प्त्यर्थं च ॥ ११॥ मुण्डककी समाप्ति के लिये है ॥११॥ इत्यथर्ववेदीयमुण्डकोपनिषद्भाप्ये तृतीयमुण्डके द्वितीयः खण्डः ॥ २ ॥ समाप्तमिदं तृतीयं मुण्डकम् इति श्रीमद्गोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यम्य परमहंसपरिव्राजकाचायस्य श्रीमच्छङ्करभगवतः कृताबाथर्वणमुण्डकोपनिषद्भाष्यं समाप्तम || fen