पृष्ठ:मुण्डकोपनिषद्.djvu/१३

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खण्ड १] शाङ्करभाष्यार्थ ब्रह्म मन्तस्तेषां गर्भजन्मजरारोगा- ' जाते हैं यह उनके गर्भ, जन्म, द्यनर्थपूगं निशातयति परं वा छेदन करती है,अथवा उन्हें परब्रह्मको जरा और रोग आदि अनर्थसमूहका गमयत्यविद्यादिसंसार- प्राप्त करा देती है, या संसारके कारणरूप अविद्या आदिका अत्यन्त कारणं चात्यन्तमवसादयति अवसादन-विनाश कर देती है; विनाशयतीत्युपनिषत् , इसीलिये इसे 'उपनिषद्' कहते हैं, उपनि- क्योंकि 'उप' और 'नि' पूर्वक 'सद्' पूर्वस्य सदरेवमर्थस्मरणात् । धातुका यही अर्थ माना गया है। आचार्यपरम्परा ॐ ब्रह्मा देवानां प्रथमः सम्बभूव विश्वस्य कर्ता भुवनस्य गोप्ता । स ब्रह्मविद्यां सर्वविद्याप्रतिष्ठा- मथर्वाय ज्येष्ठपुत्राय प्राह ॥१॥ सम्पूर्ण देवताओंमें पहले ब्रह्मा उत्पन्न हुआ । वह विश्वका रचयिता और त्रिभुवनका रक्षक था । उसने अपने पुत्र अथर्वाको समस्त विद्याओंकी आश्रयभूत ब्रह्मविद्याका उपदेश दिया ॥१॥ ब्रह्मा परिबृढो महान्धर्मज्ञान ब्रह्मा-परिवृढ ( सबसे बढ़ा हुआ ) अर्थात् महान्, जो धर्म, वैराग्यश्वर्यैः सर्वानन्यानतिशेत वैराग्य और ऐश्वर्यमें अन्य सबसे इति । देवानां द्योतनवतामिन्द्रा- बढ़ा हुआ था, देवताओं-द्योतन करनेवालों ( प्रकाशमानों ), इन्द्रा- दोनां प्रथमो गुणैः प्रधानः सन् दिकोंमें प्रथम-गुणोंद्वारा प्रधान- प्रथमोऽग्रे वा सम्बभूवाभिव्यक्तः रूपसे अथवा सम्यक् खतन्त्रता- पूर्वक सबसे पहले उत्पन्न हुआ सम्यक्स्वातन्त्र्येणेत्यभिप्रायः । था यह इसका तात्पर्य है; क्योंकि न तथा यथा धर्माधर्मवशात् । “जो यह अतीन्द्रिय, अग्राह्य ज्ञान,