पृष्ठ:मुण्डकोपनिषद्.djvu/१४

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६ मुण्डकोपनिषद् [ मुण्डक १ संसारिणोऽन्ये जायन्ते । [वह परमात्मा स्वयं उत्पन्न हुआ।" इत्यादि स्मृतिके अनुसार वह, जैसे "योऽसावतीन्द्रियोऽग्राह्यः . ." अन्य संसारी जीव उत्पन्न होते है उस तरह धर्म या अधर्मके वशीभूत (मनु० १ । ७) इत्यादिस्मृतेः। होकर उत्पन्न नही हुआ । विश्वस्य सर्वस्य जगतः 'विश्व अर्थात् सम्पूर्ण जगत्का कर्तोत्पादयिता । भुवनस्योत्प- कर्ता-उत्पन्न करनेवाला तथा उत्पन्न हुए भुवनका गोप्ता-पालन नस्य गोप्ता पालयितेति विशेषणं करनेवाला' ये ब्रह्माके विशेषण ब्रह्मणो विद्यास्तुतये । स एवं [उसकी उपदेश की हुई ] विद्याकी प्रख्यातमहत्त्वो ब्रह्मा स्तुतिके लिये है । जिसका महत्त्व ब्रह्म- इस प्रकार प्रसिद्ध है उस ब्रह्माने ब्रह्म- विद्यां ब्रह्मणः परमात्मनो विद्यां विद्याको-ब्रह्म यानी परमात्माकी ब्रह्मविद्यां 'येनाक्षरं पुरुषं वेद विद्याको, जो 'जिससे अक्षर और सत्य पुरुपको जानता है' ऐसे सत्यम्' (मु० उ० १।२। १३) विशेषणमे युक्त होनेके कारण इति विशेषणात्परमात्मविषया हि परमात्मसम्बन्धिनी ही है अथवा अग्रजन्मा ब्रह्माके द्वारा कही जाने के सा ब्रह्मणा वारजनोक्तोति ब्रह्म- कारण जो ब्रह्मविद्या कहलाती है उम विद्या तां सर्वविद्याप्रतिष्ठां सर्व- ब्रह्मविद्याको, जो समस्त विद्याओकी विद्याभिव्यक्ति हेतुत्वात्सविद्या-। जिसके द्वारा अश्रुत श्रुत हो अभिव्यक्तिकी हेतुभूत होनेसे, अथवा श्रयामित्यर्थः सर्वविद्यावा वा जाता है, अमत मत हो जाता हे तथा अज्ञात ज्ञात हो जाता वस्त्वनयैव विज्ञायत इति, है" इस श्रुतिके अनुसार इसोसे "येनाश्रुतं श्रुतं भवति अमतं ' सर्वविद्यावेद्य वस्तुका ज्ञान होता है, इसलिये जो सर्वविद्या- मतमविज्ञातं विज्ञातम्" (छा० प्रतिष्टा यानी सम्पूर्ण विद्याओंकी उ० ६ । १। ३ ) इति श्रुतेः। आश्रयभूता है, अपने ज्येष्ठ पुत्र