पृष्ठ:मुण्डकोपनिषद्.djvu/१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

८ मुण्डकोपनिषद् [मुण्डक १ गोत्राय सत्यवहाय सत्यवहनाम्ने हुए सत्यवहनामक मुनिसे कहा ।

तथा भारद्वाजने अपने शिष्य अथवा

प्राह प्रोक्तवान् । भारद्वाजोऽङ्गिरसे पुत्र अङ्गिरासे वह परावरा-पर स्वशिष्याय पुत्राय वा परावरां ( उत्कृष्ट ) से अवर ( कनिष्ठ ) को प्राप्त हुई, अथवा पर और अवर परस्मात्परमादवरेण प्राप्तेति सब विद्याओंके विषयोंकी व्याप्तिके पगवरा परापरसर्व विद्याविषय- कारण ‘परावरा' कही जानेवाली वह विद्या अङ्गिरासे कही। इस प्रकार व्याप्तेर्वा तां परावरामङ्गिरसे 'परावराम्' इस कर्मपदका पूर्वोक्त प्राहेत्यनुषङ्गः ॥२॥ 'प्राह' क्रियासे सम्बन्ध है ॥ २॥ शौनककी गुरूपसत्ति और प्रश्न शौनको ह वै महाशालोऽङ्गिरसं विधिवदुपसन्नः पप्रच्छ । कस्मिन्नु भगवो विज्ञाते सर्वमिदं विज्ञातं भवतीति ॥ ३॥ शौनकनामक प्रसिद्ध महागृहस्थने अङ्गिराके पास विधिपूर्वक जाकर पूछा-'भगवन् ! किसके जान लिये जानेपर यह सब कुछ जान लिया जाता है ?' ॥ ३॥ शौनकः शुनकस्यापत्यं महा- महाशाल-महागृहस्थ शौनक- शालो महागृहस्थोऽङ्गिरसं शुनकके पुत्रने भारद्वाजके शिष्य भारद्वाजशिष्यमाचार्य विधि- आचार्य अङ्गिराके पास विधिवत् वद्यथाशास्त्रमित्येतत् ; उपसन्न अर्थात् शास्त्रानुसार जाकर पूछा । उपगतः सन्पप्रच्छ पृष्टवान् । शौनक और अङ्गिराके सम्बन्धसे शौनकाङ्गिरसोः संबन्धादर्वाग् पश्चात् ‘विधिवत्' विशेषण मिलने से