पृष्ठ:मुण्डकोपनिषद्.djvu/१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

खण्ड १] शाङ्करभाष्यार्थ सर्वविद्याप्रतिष्ठामिति च स्तौति। अथर्वासे कहा । यहाँ 'सर्वविद्या- विद्यामथाय ज्येष्ठपुत्राय प्राह । प्रतिष्ठाम्' इस पदसे विद्याकी स्तुति करते हैं । जो ज्येष्ठ ( सबसे ज्येष्ठश्चामो पुत्रश्चानेकेषु ब्रह्मणः बड़ा ) पुत्र हो उसे ज्येष्ठ पुत्र सृष्टिप्रकारेवन्यतमस्य सृष्टि- कहते हैं । ब्रह्माकी सृष्टिके अनेकों प्रकारस्य प्रमुखे पूर्वमा सृष्ट प्रकारोंमें किसी एक सृष्टिप्रकारके आदिमे सबसे पहले अथर्वाको ही इति ज्येष्ठस्तस्मै ज्यष्टपुत्राय उत्पन्न किया गया था, इसलिये वह ग्राहोक्तवान् ॥१॥ ज्येष्ट है । उस ज्येष्ट पुत्रसे कहा ॥१॥ अथर्वणे यां प्रवदेत ब्रह्मा- थर्वा तां पुरोवाचाङ्गिरे ब्रह्मविद्याम् । स भारद्वाजाय सत्यवहाय प्राह भारद्वाजोऽङ्गिरसे परावराम् ॥२॥ अथर्वाको ब्रह्माने जिसका उपदेश किया था वह ब्रह्मविद्या पूर्व- कालमे अथर्वाने अङ्गीको सिग्वायी । अङ्गीने उसे भरद्वाजके पुत्र सत्यवहसे कहा तथा भरद्वाजपुत्र (सत्यवह) ने इस प्रकार श्रेष्टसे कनिष्ठको प्राप्त होती हुई वह विद्या अङ्गिरासे कहो ॥२॥ यामेतामथर्वण प्रवदतावद जिस ब्रह्मविद्याको ब्रह्माने अथर्वा से कहा था, ब्रह्मासे प्राप्त ब्रह्मविद्यां ब्रह्मा तामेव ब्रह्मणः हुई उसी ब्रह्मविद्याको पूर्वकालमें प्राप्तामथर्वा पुरा पूर्वमुवाचोक्त- अथर्वाने अङ्गिरसे यानी अङ्गिर्- वानगिरेङ्गिनाम्ने ब्रह्मविद्याम् । नामक मुनिसे कहा। फिर उस अङ्गिर मुनिने उसे भारद्वाज सत्य- स चाङ्गिर्भारद्वाजाय भरद्वाज- वहसे यानी भरद्वाजगोत्रमें उत्पन्न