पृष्ठ:मुण्डकोपनिषद्.djvu/३१

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द्वितीय खण्ड - कर्मनिरूपण माङ्गा वेदा अपरा विद्योक्ता ऊपर 'ऋग्वेदो यजुर्वेदः' इत्यादि [ पञ्चम ] मन्त्रसे अङ्गों- ऋग्वेदो यजुर्वेद इत्या- 'सहित वेदोंको अपरा विद्या बतलाया पूर्वापरमम्बन्ध- दिना । यत्तदद्रेश्यम् है। तथा 'यत्तदद्रेश्यम्' इत्यादिसे निरूपणम् इत्यादिना नामरूपम् लेकर 'नामरूपमन्नं च जायते' अन्नं च जायत इत्यन्तेन ग्रन्थन यहाँतकके ग्रन्थसे जिसके द्वारा उक्तलक्षणमक्षरं यया विद्यया उपर्युक्त लक्षणवाले अक्षरका ज्ञान होता है उस परा विद्याका उसके अधिगम्यत इति पग विद्या विशेषणोसहित वर्णन किया । सविशेषणोक्ता । अतः परमनयो- इसके पश्चात् इन दोनो विद्याओंके विषय संसार और मोक्षका विवेक विद्ययोपियो विवक्तव्यो संसार- करना है। इसीलिये आगेका ग्रन्थ मोक्षावित्युत्तरो ग्रन्थ आरभ्यते । आरम्भ किया जाता है। तत्रापरविद्याविषयः कादि उनमें अपरा विद्याका विषय साधनक्रियाफलभेद- संसार है, जो कर्ता-करण आदि मंमारमोक्षयोः साधनोंसे होनेवाले कर्म और उसके स्वरूपनिर्देशः रूपः संसारोऽनादिः भेदवाला, अनादि, अनन्तो दुःखस्वरूप- अनन्त और नदीके प्रवाहके समान न्वाद्धातव्यः प्रत्येकं शरीरिभिः अविच्छिन्न सम्बन्धवाला है तथा दुःखरूप होनेके कारण प्रत्येक सामस्त्येन नदीस्रोतोवदव्यवच्छे- देहधारीके लिये सर्वथा त्याज्य है । दरूपसम्बन्धः, तदुपशमलक्षणो उस ( संसार ) का उपशमरूप फलरूप