पृष्ठ:मुण्डकोपनिषद्.djvu/३४

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२६ मुण्डकोपनिषद् [मुण्डक १ अग्निहोत्रका वर्णन तत्राग्निहोत्रमेव तावत्प्रथम उनमें सबसे पहले प्रदर्शित करनेके लिये अग्निहोत्रका ही वर्णन प्रदर्शनार्थमुच्यते सर्वकर्मणां किया जाता है, क्योंकि अग्नि- साध्य कर्मों में ] उसीकी प्रधानता प्राथम्यात् । तत्कथम् ? है। सो किस प्रकार ? यदा लेलायते ह्यर्चिः समिद्धे हव्यवाहने । तदाज्यभागावन्तरेणाहुतीः प्रतिपादयेत् ॥२॥ जिस समय अग्निके प्रदीप्त होनेपर उसकी ज्वाला उठने लगे उस समय दोनों आज्यभागोंके* मध्यमें [ प्रातः और सायंकाल ] आहुतियाँ डाले ॥२॥ यदेवेन्धनैरभ्याहितैः सम्य जिस समय सब ओर आधान गिद्धे समिद्धे हव्यवाहने लेलायते किये हुए ईधनद्वारा सम्यक् प्रकार- चलत्यर्चिस्तदा तस्मिन्काले से इद्ध अर्थात् प्रज्वलित होनेपर अग्निसे ज्याला उठने लगे तब-उस लेलायमाने चलत्यर्चिष्याज्य- समय ज्वालाओंके चञ्चल हो उठन- भागावाज्यभागयोरन्तरेण मध्य पर आध्यभागोंके अन्तर-मध्यमें आवापस्थान आहुतीः प्रतिपाद- आवापस्थानमें देवताओंके उद्देश्यसे येत्प्रक्षिपेद्देवतामुद्दिश्य । अनेकाह- आहुतियाँ देनी चाहिये। अनेक दिन- तक होनेवाले प्रयोगकी अपेक्षासे यहाँ प्रयोगापेक्षयाहुतीरिति बहुः 'आहुतीः' इस बहुवचनका प्रयोग किया गया है ॥२॥ वचनम् ॥२॥

  • दर्श-पौर्णमास यज्ञमें आहवनीय अग्निके उत्तर और दक्षिण ओर 'अनये

स्वाहा' तथा 'सोमाय स्वाहा' इन मन्त्रोंसे दो घृताहुतियाँ दी जाती हैं । उन्हें 'आज्यभाग' कहते हैं। इनके बीचका भाग 'आवापस्थान' कहलाता है । शेष सब आहुतियाँ उसी में दी जाती हैं ।