खण्ड २] शाङ्करभाष्यार्थ ब्रह्मसाक्षात्कारका फल अस्य परमात्मज्ञानस्य फल इस परमात्मज्ञानका यह फल मिदमभिधीयते- बतलाया जाता है- भिद्यते हृदयग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्वसंशयाः । क्षीयन्ते चास्य कर्माणि तस्मिन्दृष्टे परावरे ॥ ८ ॥ उस परावर ( कारणकार्यरूप ) ब्रह्मका साक्षात्कार कर लेनेपर इस जीवकी हृदयग्रन्थि टूट जाती है, सारे संशय नष्ट हो जाते हैं और इसके कर्म क्षीण हो जाते हैं ॥ ८ ॥ भिद्यते हृदयग्रन्थिरविद्या "इसके हृदयमें जो कामनाएँ वासनापचयो बुद्धयाश्रयः कामः आश्रित हैं" इत्यादि अन्य श्रुतिके अनुसार 'हृदयग्रन्धि' बुद्धिमें स्थित "कामा येऽस्य हृदि श्रिताः" । अविद्यावासनामय कामको कहते (क० उ० २।३। १४, ६० हैं । यह हृदयके ही आश्रित रहनेवाली है आत्माके आश्रित उ० ४। ४ । ७) इति श्रुत्यन्त- : नहीं । [ उस रात् । हृदयाश्रयोऽसौ नान्माश्रयः साक्षात्कार होनेपर यह ] भेद भिद्यते भेदं विनाशमायाति । अर्थात् नाशको प्राप्त हो जाती है । तथा लौकिक पुरुषोंके ज्ञेय पदार्थ- छिद्यन्ते सर्वज्ञेयविषयाः संशया विषयक सम्पूर्ण सन्देह, जो उनके लौकिकानामामरणात्तु गङ्गा- मरणपर्यन्त गङ्गाप्रवाहवत् प्रवृत्त होते रहते हैं, विच्छिन्न हो जाते स्रोतोवत्प्रवृत्ताविच्छेदमायान्ति। हैं। जिसके संशय नष्ट हो गये अस्य विच्छिन्नसंशयस्य निवृत्ता- हैं और जिसकी अविद्या निवृत्त हो चुकी है ऐसे इस पुरुषके जो विद्यस्य यानि विज्ञानोत्पत्तेः विज्ञानोत्पत्तिसे पूर्व जन्मान्तरमें प्राक्तनानि जन्मान्तरे चाप्रवृत्त- किये हुए कर्म फलोन्मुख नहीं हुए आत्मतत्त्वका
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