१०६ मुद्राराक्षसन के त्रिगत का यह एक उदाहरण होता है पर अनुवाद में इन शा के बढ़ने से यह इस में नहीं आ सका । मो-गृह-नीति-स्वरूप उपमा है। गुणवती-त्री के छ गुण सुभाषित में यों गिनायें हैंकारे मंत्री, बचनेषु दासी, भोज्येषु माता, शयनेषु रंभा। धर्मानुकूा क्षमया धरित्री भार्या च षड्गुण्यवतीह दुर्लभः । नीतिविद्या संधि, विग्रह, यान ( चढ़ाई ), पासन (सुअवसर पाने या निर्बजत दूर करने के लिए रुकना), द्वैध ( मुख्य उद्देश्य को गुप्त रख का दूसरा प्रकट करना) और आश्रय (प्रबल की सहायता लेना) गुण है। शरद में जल प्रसाद रूगी गुण है। उपायों की आधार- सांसारिक कार्यों के साधन को जाननेवाली। साम, दान, भेद अ. दंड राजनीति के चार उपाय हैं । जिगीषा अर्थात् जयेच्छा : शरद में उत्पन्न होना। संसार यात्रा के लिए (स्थितिहेतोः) त्रिवर्ग को साधनेवाली- सांसारिक व्यापार अर्थ धर्म, काम को साधनेवाली। राजा की स्थिा के लिए-क्षयस्थानञ्च वृद्धिश्च त्रिवर्गानीतिरेदनाम्-की साधिः नीतिविद्या । वर्षा के विगत होने से शरद विजय का अवसर देकर अर्थे तथा उसे पूर्ण कर धर्म और काम को साधती है। कार्यों का उपदेश देने वाली-शरद पक्ष में युद्ध यात्रादि कार्यों के प्रवर्तिका। - इस प्रकार भार्या, नीतिविद्या तथा शरद तीन पक्षों में इस श्लोः का अर्थ घटाया गया है। पहले में सूत्रधार अपनी स्त्री को प्रसंशा करता हुआ बुलाता है। दूसरे से राक्षस को पकड़ने योग्य नीतिविर का आह्वान किया जाता है और तीसरे से तृतीय अंक में उल्लखित शरद का भागम दिखलाया जाता है। अर्थात् श्लोक के विशेषणों वे तीन विशेष्य माने गए हैं। ३८-संस्कृत मुहावरे में स्त्रियाँ पति को आर्यपुत्र कहकर संबेघर करती हैं।
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