पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१७६

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परिशिष्ट व १०५ १.-पाताल-बुराणानुसार पृथ्वी के नीचे का सातवाँ लोक, जो सुवर्ण का है और नागों के वास करने के कारण नागलोग भी कहलाता है । अधोलोक, पृथ्वी के नीचे की ओर । १३-नाचत-वाल और गति के अनुसार हाथ पाँव को हिलाने, भाव बनाने और उछलने कूदने को नाचना, नृत्य करना आदि कहते हैं। सर्वे =(१) सब, (२)(शर्व ) शित्र, महादेव । १६-सामंत = सर्दार, अधीनस्थ मांडलीक । . १७-मुद्राराक्षस-(मुद्रया गृहीतः राक्षसः इति मुद्राराक्षसः) नाटक के प्रधान पात्र चाणक्य की अभीष्ट-सिद्धि मुद्रा ( अर्थात् राक्षस की अँगूठो वाली मुद्रा, जिसे निपुणक-नामक चर ने लाकार दी थो) के द्वारा हुई थी इसलिए नाटक का नाम यही रखा गया। २०-मूरख-(मूर्ख ) यहाँ कृषि-कर्म में अनभिज्ञ पुरुष के लिए मूर्ख शब्द लाग गया है। • २२-सुघर = कार्यों को सुघड़ापे से अर्थात् अच्छी प्रकार करने वालो। घरनी =गृहिणी गृहस्वामिनी। २६-पीसत सुगध = केशर, इलायची भादि सुगंधित द्रव्य को पीसना। २८-२९-कहूँ तियगन.... .........सुनि भावत-अन्वय-कहुँ तियगन हुँकार सहित मुसल को शब्द होत (जो) स्त्रवन (हिं ) अति सोहावत ( अरु ) जिय को सुनि सुखद भावत । मूल में जो के बाद का अंश नहीं है। ३२-३५-मूल श्लोक का अर्थ हे गुणवतो ! उपायों की आधार ! संसार-यात्रा के लिए त्रिवर्ग को साधनेवाली ! कार्यों .( कर्त्तव्य बतलाने ) के लिए उपदेश देने वाली ! मेरे घर की नीति- विद्या स्वरूपिणी पायें ! शीघ्र प्राओ। अनुवाद में 'री नटी ! विलंब न कर सुनि प्यारी ! अधिक है। . मूल रत्तोक का श्लेष से अनेक ( तीन ) अर्थ लेने के कारण आमुखांग