पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१८७

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११६ मुद्राराक्षस नारक थे। जमरट जर्थात् चित्र जिममें जमसबंधी चित्र थे। हर्षचरित पृ. १७० में जमपट्टिका का उल्लेख है। ११५-सर्वज्ञता-सभी विषयों को समान रूप से जानना । ११७-चंद्र से चंद्रगुप्त को इंगित करता है । १२२-१२३-याप कमन्न सुंदर होता है पर वह चंद्र से विरोध करता है । साथही तात्पर्य यह है कि चंद्रगुप्त के अभ्युदय को न सहन करनेवाले भी पुरुष हैं। १४४-१४५-कौन अपना जीवन नहीं सह सकते-अर्थात् चंद्रगुप्त की श्रीवृद्धि को नहीं सह सकना तथा जीवित नहीं रहना बराबर है। .." १६७-जौहरी-[फा० गौहर शब्द का अर्थ मोती है, जिसका अरबी स्वरूप जौहर है ] जौहर+ई =जो जौहर अर्थात मोतीरत्न आदि का व्यापार करे। मूल में मणि कार श्रेष्ठी है, जिसका अर्थ भीरत्नों का व्यापारी है। .. १७३-मोहर की अंगूठी-[फा० मुह ] मुद्रा जो अँगूठो पर रत्न जड़ने के स्थान पर खोदी जाती है । इसे अंगुलीमुद्रा या मुह की अँगूठी कहते हैं। . १८५-१९१-मूल पाठ यों है-तब पाँच वर्ष का एक सुदर बालक शिशुसुलभ कौतूहल से उत्फुल्ललोचन होकर एक छोटे द्वार से बाहर निकलने लगा इस पर स्त्रियों द्वारा 'बाहर निकला, बाहर निकला, का भयव्यंजक कलकल द्वार के भीतर से सुनाई पड़ा, जिसके अनंतर एक स्त्रो द्वार से मुख कुछ बाहर निकालकर कोमल हाथों से उस बालक को भत्सना करते हुए पकड़ ले गई। बालक को पड़ने में व्यग्र होने के कारण पुरुष की अगली के नाप की होने से यह अंगठी उसके चंचल अंगुली से निकल कर देहली पर गिर पड़ी और छटककर मेरे पैरों के पास प्रणाम करती हुई कुलवधू के समान आकर निश्चल हो गई। मैंने भी उसपर राहस का नाम अंकित देखकर आपके पैरों के पास ना रखा । अँगूठी पाने का यही वृत्तांत है।