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पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१८९

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११८ मुद्राराक्षस नाटक जो संकेत को लक्ष्य न कर सकेगा, समझे कि यह वस्तुतः हमारा हितैषी है और इसने धमकाकर उन्हें भगा दिया है। २६०-अधिक गुप्त बात को कान में कहलाकर नाटककार दर्शकों तथा पाठकों की उत्सुकता बढ़ा रहा है। ___२६४--काल्पाशिक और दंडपाशिक-[कलापाश+ठक और दंडपाश+ठक ] जिस रस्सी और डंडा से वे फाँसी देनेवाले मनुष्यों को मारते थे, उन्हीं को यमराज का कालपाश और दंड-पाश समझ कर उनके नामकरण किए गए थे। २६५-राक्षस ने इसी क्षपणक द्वारा विषकन्या चंद्रगुप्त के लिए भेजी थी। २५-चाणक्य अपने एक मित्र चर क्षपणक को इस प्रकार निकालकर और दूसरे को शकटदास की रक्षा के बहाने राक्षस के पास भेजने का प्रबंध कर चिंता करता है कि क्या ये सब उपाय सफल होंगे। ... २७६-लिया-सिद्धार्थक इस विचार से इस शब्द को कहता है . कि मैंने चाणक्य के बतलाए हुए कार्य काठीक तात्पर्य समझ लिया .पर चाणक्य राक्षस को पकड़ने की चिंता कर रहा था, उसे वह शब्द पकड़ लिया' बोध हुआ, जिसे वह शुभ भविष्य वाणी समझ कर प्रसन्न हुथा। २८-संस्कृत की एक प्रति में यहाँ एक श्लोक है पर अन्य प्रतियों में इसी श्लोक का तात्पर्य गद्य में दिया गया है। ३००-योग्य सत्कार से अधिक वा कम दोनों ही कष्टकर । ३०२-३.३-मूल के अनुसार 'आपके साथ तो हम लोगों का यह व्यवहार उचित है' चाहिए। ___३०४-अर्थात् शंका करता है कि चाणक्य ने मेरे बारे में कुछ पता लगाया है। चंदनदास को राक्षस की मुदा के खो जाने से यह शंका हुई थी कि चाणक्य को राक्षस की स्त्री पुत्र का उसके गृह में होने का कहीं पता न लग गया हो।