पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/१९३

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मुद्राराक्षस नाट १२२ जाय अर्थात् रहे केवल हमारी वही एक बुद्धि जो सैकड़ों सेना से बढ़ कर काम करने वाली है और जिससे नंदकुल का नाश किया गया है। काव्यलिंग और व्यतिरेक अलंकार है। ४३९-४४०-मुड से बिछुड़ा हुआ अकेला और जिसका मद चू रहा है ऐसे मत्त हाथी को जिस प्रकार मनुष्य बाँध लाते हैं वैसे? हम ( चाणक्य) तुम्हें ( राक्षस ) चंद्रगुप्त के कार्य के लिए पकड़े अर्थात् मंत्री बनावगे। राक्षस अकेला था। उसका कोई ऐसा सच्चा मित्र न था जो उस परामर्श देकर चाणक्य को पराजित करने में उसको सहायता देता। राक्षस मदलित भी हो चुका था अर्थात् उसका मद (अभिमान) गलित [च्युत, नष्ट भ्रष्ट ] हो चुका था। उपमा तथा श्लेष है। चाणक्य को अपनी चाल पर इतना विश्वास था कि वह अभी: इस प्रकार कह रहा है मानो वह अवश्य ही सफल होगी। द्वितीय अंक चन्द्रगुप्त के नाश के लिए राक्षसकृन उपायों के वृत्तांत कहने के प्राप्त्याशा पताका संबन्धी गर्भसंघि से यह द्वितीयांक आरंभ होर है रिक्षस का चर विराधगुप्त मदारी के रूप में कुसुमपुर से अनेर बातों का पता लगाकर पाया है जिसके और राक्षम्र के कथोपकथन में राक्षस के उपायों का और उसे चाणक्य ने किस प्रकार निष्फर किया उन सबका विवरण आ जायगा। नाटककार ने प्रथम अंक में यह दिखलाकर कि चाणक्य कैर. कुशल राजनीतिज्ञ है, वह दूरदर्शिता से किम प्रकार शत्रु के षड्य को समझकर उसका प्रतीकार करता है और उनमें कहाँ तक आत्मब । तथा निज कौशल में विश्वास है अब दूसरे अंक में उसके प्रतिद्वं राक्षस के असफल प्रयत्नों का दिग्दर्शन कराकर उसके राजनीति-कौश का चित्र खींचा है।