पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- परिशिष्ट ख 'चंद्रगुप्त को विनम्र तथा राक्षम की मत्तता हरण करती है। ऐसा इस श्लोक से व्यजित होता है। (३ : रति कथा चतुरा दूती जिस प्रकार खंडिता नायिका को .. पत्लाक स्वामी के पास जाने के मार्ग पर उपस्थित कर और उसे प्रसन्न चित्त कर स्वामी से मिलाती है, उसी प्रकार शरद ऋतु कशलिला गंगा को सागराभिमुखी कर और उसको निर्माता तथा कुशता द्वारा प्रसन्न कर ममुद्र से मिलाती है। इम में अर्थश्लेषानुप्राणित पूर्णोपमालंकार है। पर गंगाजी सी पतिव्रग कभी मान कर सागर से नहीं मिली थी, ऐसा पता नहीं चनता । इन लोक से चंद्रगुप्त के अभ्युदय की ध्वनि निकलती है। चाणक्य-नीति राज्य-लक्ष्मी को चंद्रगुप्त के पास लाती है। .. अनुवाद में शरद का स्वतंत्र वर्णन चार दोहों में किया गया। है; जो मल श्लोकों से भिन्न है। कौमुदी महोत्सव पूर्णिमा को होता है, इमलिए उसी दिन के शरद का वर्णन चंद्रगुप्त द्वारा किया गया है। शरद ऋतु के कारण नीला आकाश स्वच्छ हो रहा है। पूर्णला । से कलाधर शोभायमान हैं। चमेली का फूल सुगंधि दे रहा है । नदी के तट पर सफेद कास के फूल फूले हुए हैं और तालाबों में कोई रही है, जिस पर भौंवरे गुजायमान हैं। चाँदनी वस्त्र, चंद्रमा मुख, तागवली मोती की माला और कासपुष्प मुसकान है। यह शरद है या नई बाला है।

. 'अंतिम दोहे में सहालंकार है।

६१-तकीद करना-मल में 'आघोषित:' शब्द है, जिसका अर्थ 'घोषणा किया गया है। . ६६-७२-पल श्लोक का अथ- - बातचीत में निपुण धूर्त नागरिकों के साथ भरी नितंबों के बोझ से धीरे धीरे चलनेवाली वारवानिताएँ राजमार्ग को शोभायमान करती हैं। ऐश्वर्यशाली नगरवासी भी अपने वैभवों के प्रदर्श