। ३९.-७-राक्षस के लिए किस पक्ष में अधिक लोम है यह खिलाता हुधा मलयकेतु इस दुष्ट कर्म का कारण पूछता है । चंद्रगुप्त तुम्हारे स्वामी का पुत्र है (इससे तुम यदि उसका पच ण करोगे तो वर स्वामित्व ही दिखलावेगा) और हम मित्र के "त्र होते हुए स्वार्थी हैं (इससे हमारे पक्ष में रहने से आपका ही मुत्व रहेगा)। उधर चंद्रगुप्त जो भापको देगा वही मिलेगा और इधर (सभी आप का रहेगा और हमारा वही होगा जो। बाप हमें देंगे। प्रधान मंत्री होने पर भी आप वहाँ दास हो 'हलाएंगे पर यहाँ आप ही स्वामी ( अर्थान् नाम के लिए मैं राजा हूँगा) रहेंगे। ऐसा होते हुए भी आपने किस अधिक बाम के बोम यह दुष्ट कर्म किया ? मलयकेतु राक्षस को उपालंम दे रहा है, जो राक्षस के लिये नष्ठुर होते हुए भी मलयकेतु की विनम्रता प्रकट करता है। ' साहित्यदर्पण के लक्षण 'यथासंख्यानूदेश उद्दिष्टानां क्रमेणयत्' के अनुसार यथासंख्यालंकार हुधा। ___४०५-मून में 'चाणक्य ने नहीं किया' नहीं है। । ४०७.१०-जो भृत्य स्वामिभक्ति के कारण अपना शरीर स्वामी पर निछावर कर देता है उस पर उसका प्रभु भी पुत्र के समान म रखता है। जिस देव ने ऐसे गुणग्राहक राजाओं का चश में श कर दिया उमी का यह भी दोष है । दूसरों का इममें कुछ भी नहीं। । मूल में भृत्यत्व का विशेषण परिभावधामनि (अपमानों का र') अधिक है। अतिशयोक्ति अलंकार है। ४१३-१४-तीन विष से युक्त कन्या का केवल प्रयोग करके मने विश्वस्त पिता का केवल नाम मात्र रहने दिया अर्थात् नाश कर दिया। अव चंद्रगुप्त के मंत्रित्व के लोम से हम लोगों को त्रिों के हाथ भासवत् बेचने को तैयार हुए हो।। मूल का यह अर्थ है और अनुबाद में उसका भाव भा गया है।
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