पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/२९

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गई,जिससे आर्यावर्त के समान उस प्रांत का नाम प्रारियन ऐरण हुआ, जिससे ईरान शब्द बना। इस देश का एक अ पारस्य प्रांत कहलाता था, जहाँ के वासा हखामनीय वश का वि० भग सात शताब्दी पहले अधिकार होने पर कुल देश पारस कहर महाभारत, विष्णुपुराण, रघुवंश, कथासरित्सागर श्रादि में ८ पारसीक का उल्लेख मिलता है। विक्रम सं० के प्रारंभिक काल वंश प्रबन था, जिससे पारस देश कभी उसके तथा कभी यवनों में होता था, पर तीसरी शताब्दि के अंत में सासान वश पारदो कर स्वतंत्र हो गया। इस वश का सं० ६६७-६ के नहीवद कर मुसलमानों ने पारस में आर्य संस्कारों का नाश कर दिर साथ योरोप की यूनानो [ यवन ] जाति का पारस पर जो अ उसका भी अंत हो गया। पारस के किसी नरेश का नाम मेघाख जुलता नहीं मिला पर यह भी विचारणीय है कि यदि पारस स्वयं बलवाइयों का साथ देने को इतनी दूर भारत पर चढ़ाई कर वह घटना ऐसी गुप्त नहीं रहती। स्यात् किसी सेनानी के अधीन

माध-मुद्राराक्षस में इसे एक जाति माना है [ खस मगधगणे मगध के उन रहने वालों से तात्पर्य हो जो चंद्रगुप्त से नेह रखते थे

मलय-इस नाम के बारे में जस्टिस तैलंग लिखते हैं कि पाठ ठीक है तो नाटक में केवल रही एक दक्षिणीय स्थान है। घाट का दक्षिणः छोर है । मलय नाम को छोड़ कर सभी स्थान: के तथा अधिकतर पश्चिमोत्तर सीमा के हैं। इससे यह ध्वनि निव नाटक के मलय को पश्चिमोत्तर सीमा पर, मुख्य कर मायके की सीमा पर होना चाहिये या मलय पाठ ही अशुद्ध है। चाणक चर ने कहा था कि कौलून, काश्मीर और मलय मलयकेतु का है, इससे इन तीनों का मलयकेतु के राज्य की सीमा पर होना और साथ ही मलय की कोलूत तथा काश्मीर के आस ग हो सिकंदर के समय के पंजाब में माली और मल्लं ई नाम की दो होने का उल्लेख है । ग्रीक लेखकों ने मल्लोई जाति के पास a