पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/४६

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( ३६ ) स्थिति का विचार है। नाटक का रंगस्थन अधिकतर पाटलिपुत्र, कुसुमपुत्र • या पुःपुर ही में है । जस्टिस तैलंग ने इस विषय पर जो कुछ विचार किया है वह पहिले दे दिया जाता है। नाटक में पाटलिपुत्र का जो भूगोल मिलता है, वह मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त के समय की स्थि'त के अनुकून न होगा प्रत्युत् नाटककार के समय ही के अनुकूल होगा और यह तर्क विकल सारहीन नहीं है। पूर्वोक्त तक इस विचार से अधिक पुष्ट होगा है कि नाटक- कार ने भौगोलिक स्थिति का जो कुछ वर्णन किया है, उसका नाटक में अन्य तात्पर्य से ही उल्लेख हो गया है। नाटक से ज्ञात होता है कि पाटल. पुत्र सोन नदी के दक्षिण में था और सुगांपप्रासाद* गंगा जी पर था। इससे यह भी मान लेना ठीक है कि नायक-रचना के समय पाटलिपुत्र असा हुआ नगर था ! यह विचार तभी मान्य है, जब हम ना में दी हुई भौगो. लिक स्थिति के संबंध में जो तर्क ऊपर कर पाए हैं, वह ठीक हो । चीनी यात्री फाश्यान, जौं र न ३६६ ई. तक यात्रा का रहा, पार्शलपुत्र को मगध की राजधानी निखता है पर मुग्नच्चांग, जिने सन् ६२६ और ६४३ के बीच यात्रा की थी, इसे बहुत दिनो से उसखा हुअा 'लन्यता है अर्थात् उस समय तक पारलिपुत्र वर्तमान थः । पर सन् ७५६ ई. के चीनी वर्णन से ज्ञात होता है कि 'होल गनडी का तट टूट गया और वह गुप्त हो गया। अनुव दक ने होलग से गंगा जी का तात्पर्य लिया है। मिसर कनिमहम तथा मिस्टर बेगनर ने यही मान कर लिखा है कि गंगा जी के तट मे पा:लिपुत्र नष्ट हुधा । इस विचार से मुद्राराक्षस की रचना माट: शब्द ईसी के पूर्वाद्ध की है। माटेनजिन के उक्त विवरण को फिर * शिन प्रति में वह अंरा इस प्रकार दिया गया है कि सन ६६८ में चीन ने हलग देश खोया औः भारतवर्ष के राजों ने उस समय से दबार बाना छोड दिया। इस प्रकार से दोनो अनुबाद एक दूसरे से भिन्न हैं, इस इन विषय पर अधिक नहीं लिखा जाता है। प्राधुनिक परना शेरशाह का भग हुआ है। पारलिपुत्र की स्थिति के बारे में अन्य विद्वानों ने जो कुछ तक

  • यह प्रासाद गुप्त काल के प्रारंभ में निर्मित हुआ था और इसका

ल्नेग्र भी इस नाटक के रस काल का होना सचिन करना है।