पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/५३

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अनादर उसके पक्ष में अत्यंत दुखदाई हुअा। नित्य सत्त का बरतन हाथ में लेकर अपने परिवार से कहता कि जो एक भी नदवंश को जड़ से नाश करने में समर्थ हो वह यह सत्तू खाय । मंत्री के इस वाक्य से दावित होकर उसके परिवार का कोई भी सत्त न खाता । अंत में कागगार की पाड़ा से एक एक करके उसके परिवार के सब लोग मर गए। . एक तो अश्मान का दुःख दूसरे कुटुंब का नाश दोनों कारणों से शकार अत्यंत तनछीन मनमलीन दीन हीन हो गया। किंतु वह अपने मनसूबे का ऐसा पक्का था कि शत्रु से बदला लेने की इच्छा से अपने प्राण नहीं त्याग किए और थोड़े बहुत भोजन इत्यादि से शरीर को जीवित रखा। रात दिन इसी सोच में रहता कि किस उशय से वह अपना बदला ले सकेगा ___ कहते हैं कि राजा महानद एक दिन हाथ मुंह धोकर हँसते हँसते जनाने में पा रहे थे। विवक्षणा नाम की एक दासी, जो राजा के मुंह लगने के कारण कुछ धृष्ट हो गई थी, राजा को हंसता देखकर हंस पड़ी। राजा उसकी दिटाई से बहुत चिढ़े और उससे पूछा 'तू क्यों हंसी?" उसने उत्तर दिया- 'जिस बात पर महाराज से उसा पर मैं भी हँसी ।" मानद इस बात पर और भी चिढ़ा और कहा कि "अभी बतला कि मैं क्या हैंसा, नहीं तो तुम को प्राणदड होगा।" दासी से और कुछ उपाय न बन पड़ा श्रार उसन घबड़ाकर इसके उत्तर देने को एक महीने को मुहनत चाही। राजा ने कहा कि "आज से ठीक एक महीने के भीतर जो उत्तर न देगी वो कभी तेरे प्राण न बचगे।" विवक्षणा के प्राण उस समय तो बच गए पर महीने के जितने दिन 'चौतते थे म.रे चिता के वह उतनी ही मरी जाती यो । कुछ सोच विचार 'कर वह एक दिन कुछ खाने पीने की सामग्री लेकर शकटार के पार गई और रो रो कर अपनी सब वित्ति कहने लगी। मत्री ने कुछ देर तक सोचकर

उम अवसर की सब घटना पूछी और हँस कर कहा-"मैं जान गया, राजा

क्यों इसे थे। कुल्ला करने के समय पानी के छोटे छोटो पर गजा को बटबीज की याद आई और यह भी ध्यान हुआ कि ऐसे बड़े 42 बृन इन्हीं छोटे बीजों के अंतर्गत है। किंतु भूमि पर पड़ते ही वह जल को छीटें नाश हो