पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/५४

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( ४७ ) गये राजा अपनी हमी भावना को याद करके हँसते थे।" विचक्षणा ने हाथ जोड़ कर कहा- यदि श्रापके अनुमान से मेरे प्राण की रक्षा हंगी तो मैं जिस तरह से होगा, श्रारको कैदखाने से छुड़ाऊँगी और उन्म भर श्रापकी दामी होकर रहूंगी।" ____राजा ने विचक्षण। से एक दिन फिर हँसने का कारण पूछा, तो विचक्षणा ने शकटार मे जैसा सुना था कह सुनाया । राजा ने चमकृत होकर गछा “मच बना तुम मे यह भेद किसने कहा " दसी ने शकटार का तर वृत्तांत कहा और राजा को शकटार का बुद्धि की प्रशसा करते देख अवसर पाकर उसके मुक्त होने की भी पार्थना की। राजा ने शकटार को बंदी से छुड़ाकर राक्षम के नीचे मंत्री बनाकर रखा। ऐसे अवसर पर ग ल ग बहुत चूरू गते हैं। पहले तो किसी की अत्यंत प्रतिष्ठा बढ़ानी ही नं नि-विरुद्ध है। यदि संयोग से बढ़ जाय तो उसकी बहुत भी बातों की तरह देकर टालना चाहिये और जो कदाचित रहे प्रतिष्ठित मनुष्य का राजा अनादर करे तो उसकी जड़ काट कर छोड़े, फिर उसका कभी विश्वास न करे। प्रायः अमीर लोग पहले तो मुसाहिबों या कारितों का बेनरह सिर चढ़ाते हैं पार फिर छोटी छोटी बातों पर उनकी प्रतिष्ठा हान कर देते हैं । इसीसे ऐसे लोग गजात्रों के प्राण के ग्राहक हो जाते हैं और अंत में नद की भॉति उनका नाश होता है। शकटार यद्यपि बंद ख ने से छूटा और छो। मत्रो भो हुआ, किंतु अपनी अप्रतिष्ठा और परिवार के नाश का शोक उसके चित्त में सदा पहिले ही सा जागता रहा । रात दिन वह यही सोचता कि किस उगय से ऐसे अव्यवस्थित वित्त उद्धत राजा को नाश करके अपना बदला लें । एक दिन घोड़े पर वह हवा खाने जाता था। नगर के बाहर एक स्थान पर देखता है कि एक काला सा ब्राम्हण अपनी कुटी के सामने माग को कुशा उखाड़ उखाड़ कर उसकी जड़ में मठा डालता जाता है। पनीने से लथपथ है, परंतु शरर की ओर कुछ भी ध्यान नहीं देता। चारो ओर कुशा के बड़े बड़े ढेर लगे हुए हैं। . राकटार ने आश्चर्य से ब्राम्हण से इस श्रम का कारण पूछा। उसने कहा- मेग नाम विष्णुगुप्त चाणक्य है। मैं ब्रम्हचर्य में नीति, वैद्यक, ज्योतिष, रसायन आदि संसार की उपयोगी सब विद्या पढ़ कर विवाह की इच्ा से