पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/७२

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चंद्र-बिंब पूर न भए र केतु हठ दाप । बल सों करिहै ग्राम कह ( नेपथ्य में ) हैं। मेरे जीते चंद्र को कौन बल से ग्रस सकता है । सूत्र- जेहि बुध रच्छत भाप । नटी-आये! यह पृथ्वी ही पर से चंद्रमा को कौन बचाना चाहता है। सूत्र---प्यारी ! मैंने भी नहीं लखा, देखो, अब फिर से वही पढ़ता हूँ और अब जब वह फिर व लेगा तो मैं उसकी वाली से पहिचान लूगा कि कौन है। ['चद्र'वंब पूर न भए' फिर से पढ़ता है ] (नेपथ्य में) हैं! मेरे जीते चंद्र को कौन बन से ग्रस सकता है ? सूत्र--(सुनकर ) जाना। अरे ? अहै कौटिल्य में • नटी-(डर नाट्य का तो है) सूत्र- दुष्ट टेढी मतिवारो। नदबंश जिन सहजहिं निज क्रोधनल गारो ॥ चंद्रग्रहण का नाम सुनत निज नृप को मानी। इतही पावत चंद्रगुप्त पै कछु भय जानी ॥ तो अत्र चलो, हम लोग चल। ( दोनों जाते हैं) इति प्रस्तावना