पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/७१

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मुद्राराक्षम नाटक ' ती अब मैं घर से सुधर घरनी को बुलाकर कुछ गाने बजाने का ढंग जमाऊं। ( घूमकर ) यही मेरा घर है, चल । (आगे बढ़कर ) पहा! आज तो मेरे घर में कोई उत्सब जान पड़ता है, क्योंकि रवाले सब अपने-अपने काम में चूर हो रहे हैं। पीसत कोक सुगंध, कोऊ जल भरिकै लावत । कोऊ बैठिकै रंग रंग की माल बनावत ॥ कहुँ तियगन हुँकार-अहित, अति स्रवन सोहावत । होत मुसल को शब्द सुखद जिय को सुनि भावत ॥ जो हो, घर से स्त्री को बुलाकर पूछ लेता हूँ। - ( नेपथ्य की ओर देखकर ) री गुनवारी ! सब उपाय की जाननवारी ! घर की राखनवारी ! सब कछु साधनवारी! मो गृह नौति सरूप काज सब करन संबारी। बेगि आठ री नटी ! विलंब न करु सुनि प्यारी! [नी आती है ] नटी-आर्यपुत्र ! मैं आई, अनुग्रहपूर्वक कुछ आज्ञा दीजिये । सूत्र-प्यारी आज्ञा पीछे दी जायगी, पहले यह बता कि आज ब्रह्मणों का न्योता करके तुमने कुटुंब के लोगों पर क्यों अनुग्रह किया है ? या आप ही से आज अतिथि लोगों ने कृपा किया है कि ४० ऐसे धूम से रसोई चढ़ रही है ? नटी-आय ! मैंने ब्राह्मणों को न्योता दिया है। सूत्रः-क्यों ? किस निमित्त से १ नटी-चंद्रग्रहण लगनेवाला है। सूत्र०-कौन कहता है ? . ___ नटी-नगर के लोगों के मुंह सना है।

सूत्र--प्यारी! मैंने ज्योतिः शास्त्र के चौसठों अंगों में बड़ा

परिश्रम किया है। जो हो, रसोई तो होने दो, पर आज तो गहन है यह तो किसी ने तुझे धोखा ही दिया है क्योंकि-