पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

द्वितीय अंक चा.-( आप ही बार ) निज काज. साधने के लिए जाय । ( क्रोध से प्रकाश ) भद्रपट, पुरुषदत्त, हिंगुरात बलगुप्त, राजसेन, रोहिताक्ष और विजयवर्मा से कहो कि दुष्ट भागुरायण को पकड़ें। शि-जो आज्ञा (बाहर जाकर फिर आकर विषाद से) महाराज! बड़े दुःख की बात है कि सब वेड़े का बेड़ा हलचल हो रहा है । भद्रभट इत्यादि तो सब पिछली ही रात भाग गये। ___चा:-(भाप ही आप ) सब काम सिद्ध करें (प्रकाश)४३० बेटा, सोच मत करो। जे बात कछु जिय धारि भागे भले सुख सों भागहीं । जे रहे तेहू जाहिं तिनको सोच मोहि जिय कछु नहीं।। सत बैन हूँ सो अधिक साधिनि काज की जेहि जग कहै । सो नंदकुल की खननहारी बुद्धि नित मोमें रहै ॥ ( उठकर और आकाश की ओर देखकर ) अभी भद्र-भटादिकों को पकड़ता हूँ (आप ही आप ) दुरात्मा राक्षस ! अब मुझसे भागकर ' कहाँ जायगा १ देख- एकाकी मद-गलित गज जिमि नर लावहिं बांधि। चंद्रगुप्त के काज मैं तिमि तोहिं थरिहौं साधि ॥ [सब जाते हैं-जवनिका गिरती है ] इति प्रथमांक द्वितीय अंक स्थान-राजपथ [मदारी भाता है] मदारी-अलललल लल ! नाग लाए, साँप लाए ! तंत्र युक्ति सब जानहीं मंडल रचहिं विचार। मंत्र रक्षही ते करहिं अहि नृप को उपचार । (माकाश में देखकर ) महाराज ! क्या कहा ?'तू कौन है । महाराज ! मैं जीर्ण विष नाम सँपेरा हूँ। (फिर आकाश की ओर